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भी ये सभी वस्तुये परस्पर मिलकर एक पिण्ड का रूप नही धारण करती है । उक्त चारो प्रकार की वस्तुओ को छोडकर शेप जीव और पुद्गल नाम की जितनी वस्तुये विश्व में विद्यमान है उनके विषय मे जेन सस्कृति के आगम ग्रन्थो मे निम्न प्रकार की व्यवस्था बतलायी गयी है ।
समस्त जीवो का दो वर्गो में विभाजन
स्वरूप दृष्टि से अपनी-अपनी पृथक् पृथक सत्ता को प्राप्त सम्पूर्ण अनन्तान्त जीव यद्यपि अनादिकाल से ज्ञानावरणादि आठ कर्मरूप पुद्गलो से और मन, वचन तथा कायरूप तीन नोकर्मरूप पुद्गलो से बद्धता मिश्रण ) को प्राप्त होकर रहते आये हैं, परन्तु आगे चलकर ये सव जीव मुक्त और ससारी दो वर्गों में विभक्त हो गये है ।
जो जीव उक्त ज्ञानावरणादि आठ कर्मरूप और मन, वचन और काय इन तीन नोकर्मरून पुद्गलो के साथ अनादिकालीन परम्परा से चली आ रही बद्धता को सर्वथा समाप्त कर चुके है वे सब जीव मुक्त कहलाते हैं और जो जीव उक्त कर्म तथा नोकर्मरूप पुद्गलो के साथ अनादिकालीन परम्परा से चली आ रही बद्धता को अभी तक सर्वथा समाप्त नही कर सके है अर्थात् उस बद्धता मे ही रह रहे है वे सब जीव ससारी कहलाते है इस तरह मुक्त जीवो को अवद्धस्पृष्ट और ससारी जीवो को बद्धस्पृष्ट कह सकते है ।
मुक्त और ससारी दोनो प्रकार के जीवों का परिमाण
मुक्त और ससारी दोनो प्रकार के जीवो की यदि, परिगणना की जाय तो वे दोनो ही प्रकार के जीव पृथक्-पृथक्
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