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२७३ ५-"प जगन्मोहनलाल जी ने जैनतत्त्वमीमासा के प्राक्कथन मे पृष्ठ १३ पर यह भी लिखा है कि निमित्त चाहे क्रियावान् द्रव्य हो या चाहे निष्क्रिय द्रव्य हो, कार्य होगा अपने उपादान के अनुसार ही । अत. निमित्त का विकल्प छोड कर प्रत्येक ससारी जीव को अपने उपादान की ही सम्हाल करनी चाहिये। जो ससारी जीव अपने उपादान की सम्हाल करता है वह अपने मोक्ष रूपी इष्ट प्रयोजन की सिद्धि मे सफल होता है और जो ससारी जीव उपादान की उपेक्षा कर अपने अज्ञान के कारण निमित्तो को मिलाने के विकल्प करता रहता है वह अज्ञानी हुआ ससार का पात्र बना रहता है।"
प० जी के इस कथन के विषय मे पहलो बात तो मैं यह कहना चाहता हूं कि जब प० फूलचन्द्र जी और प० जगन्मोहनलाल जी दोनो ही विद्वानो की मान्यता के अनुसार प्रत्येक वस्तु की कालिक पर्यायें उस-उस समय के साथ नियत होकर ही विराजमान है और उन त्रैकालिक पर्यायो मे जैसा भी कार्यकारणभाव सरभव हो, वह भी उसी प्रकार उस-उस समय " के साथ नियत होकर अपना स्थान जमाये हुए है तो ऐसी हालत मे जीव को मोक्ष प्राप्त करने के लिए अपने उपोदान की सम्हाल करने की प्रेरणा देना आवश्यक नहीं है । अलावा इसके प० जगन्मोहन लाल जो द्वारा उपादान की सम्हाल करने की बात करना निमित्त के महत्व को प्रस्थापित करना नही है तो फिर क्या है ? क्योकि इस तरह प० जी दूसरो को अपने उपादान की सम्हाल करने की प्रेरणा ही तो दे रहे है । दूसरी बात उक्त कथन के विपय मे मैं यह कहना चाहता हूँ कि वस्तु मे उसकी अपनो त्रैकालिक पर्यायो की उपादान शक्ति जिसे प० फूलचन्द्र जी