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गोहनीय कामं नो पूर्वोक्त नार प्रातियों के पराम, आय अयवा क्षयोपशम आधार पर उत्पन्न प्रर्वोक्त व्यवहार सम्यग्दर्शनपर्चा निश्चय राम्यानपान तथा पूर्वोक्त व्यवहार नम्यग्ज्ञानपूर्वग निग्नय गम्यग्ज्ञान गी प्राप्ति आवघ्या है वहमले पश्चात् समग' अप्रत्यायानावरण, प्रत्याग्यानावरण और मज्वलन गापायो और नव नोकपायो के ययागम्भव अनुदय, उपराम
और क्षय के आधार पर उत्पन्न व्यवहार सम्यावाग्यिपूर्वक निरनय सम्यकनारिन की प्राप्ति आवश्यक है क्योकि इस प्रक्रिया के आधार पर ही जीव बन्ध योग्य को पासवर और पद कमों गी निजंग किया करता है।
प्र मे बतलाया जाना है कि जीव मे स्वभावत. भाववनो और नियावती नाम की दो शक्तियां विद्यमान है। उनमें से भाववती गक्ति अनादि काल से तीन रूप हो रहे हैं--एक तो चोगांन्तराय फर्मक्षयोपशम के आधार पर वीर्यप, दूसरा दगंनावरण कम गो क्षयोपशम के आधार पर दर्शनस्प और तोगग भानावरण कर्म के क्षयोपशम के आधार पर ज्ञानरूप । उपयुकाकार भाववर्ती शक्ति की दगंन मोहनीय क्मं के उदय के आधार पर अनादिकान मे ही मिथ्यात्व और अज्ञानरूप विकृत स्थिति बनी हुई है। इसी तरह क्रियावती शक्ति भी अनादिकाल से मन, वचन और काय की अधीनता मे क्रियाशील होती हई नारिम मोहनीयकम के उदय के आधार पर राग तथा दप रूप विकार को प्राप्त हो रही है । क्रियावती शक्ति वामन, वचन और काय की अधीनता मे होने वाला किया रूप परिणमन ज्ञानावरणादि माठ कर्मों का अनादि काल से ही जीव मे आस्रव कराता चला आ रहा है तथा उस क्रिया रूप परिणमन मे यथासभव चारित्र मोहनीय कर्म के उदय के आधार पर जो राग