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द्रव्यत्व है अर्थात् प्रत्येक पदार्थ परिणमनशील है । प्रत्येक पदार्थ मे अपना निजी अगुरुलघुत्व है अर्थात् प्रत्येक पदार्थ परिणमनशील तो है परन्तु वह परिणमन प्रत्येक पदार्थ के अपने निजी स्वभाव के दायरे मे ही हुआ करता है यानि कोई भी पदार्थ परिणमन करते हुए भी अपने रूप अथवा स्वरूप को न तो - सर्वथा समाप्त ही करता है और न अपने रूप अथवा स्वरूप को 'छोडकर किसी अन्य पदार्थ के रूप अथवा स्वरूप को ही प्राप्त होता है । प्रत्येक पदार्थ का अपना निजी प्रदेशवत्व है अर्थात् प्रत्येक पदार्थ अपने निजी कुछ न कुछ आकार वाला है । इसी तरह प्रत्येक पदार्थ मे अपना निजी प्रमेयत्व अर्थात् प्रमाणविषयत्व है यानि ऐसा ससार मे एक भी पदार्थ नही है जो प्रमाण द्वारा जाना न जाताहो ।
उपर्युक्त विवेचन पदार्थ की स्वतन्त्रता का है । प्रत्येक पदार्थ मे परतन्त्रता भी पायो जाती है । अर्थात् उपर्युक्त सभी पदार्थों में ऐसा एक भी पदार्थ नही है जो दूसरे पदार्थों के साथ सयुक्त न हो । आकाश दूसरे सभी पदार्थों के साथ सयुक्त हो रहा है । यही कारण है कि उसमे दूसरे सभी पदार्थों के साथ अवगाह्य-अवगाहकभाव और व्याप्य व्यापकभाव पाया जाता है । अर्थात् आकाश दूसरे सभी पदार्थों का अवगाहक और उनको व्याप्त कर रहने वाला है तथा दूसरे सभी पदार्थ आकाश के अवगाह्य और व्याप्य हैं । इसी तरह सभी पदार्थों की प्रदेशवत्ता (आकृति) का सीमित्तरूप आकाश पर आधारित है और चूँकि आकाश की प्रदेशवत्ता (आकृति) को सीमित रूप देने वाला कोई अन्य पदार्थ नही है इसलिये वह असीमित है । काल नाम के पदार्थों की वृत्ति ( मौजूदगी) स्वत सिद्ध है लेकिन अन्य