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पश्चात् अमुक पर्याय ही होना चाहिये। इससे यह सिद्ध होता है कि जिस पर्याय के अनन्तर वस्तू की निजी उपादानशक्ति के आधार पर जो पर्याय उत्पन्न होगी वह उसके अनुकूल निमित्त सामग्री के आधार पर हो होगी केवल उपादानशक्ति के आधार पर नहीं।
माना कि मिट्टी की कुशलपर्याय के अनन्तर ही घटपर्याय होगी इसलिये कुशूलपर्याय घटपर्याय की कारण है परन्तु यहा यह बात भी है कि कुशूलपर्याय के अनन्तर घटपर्याय होगी हो-ऐसा कोई नियम नही है क्योकि यदि कुशूल पर दण्ड प्रहार हो जावे तो घटपर्याय उत्पन्न न होकर एक अन्य पर्याय ही उत्पन्न हो जायगी अथवा उस समय कुम्भकार की इच्छा घटपर्याय के निष्पन्न करने की नही रही तो भी घटपर्याय निष्पन्न नही होगी। एक बात और इसमे विचारणीय है कि कार्य के प्रति उपादान कारण वही होता है जो कार्य मे अनुस्यूत रहता है। यही कारण है कि आगम मे पूर्व पर्याय विशिष्टद्रव्य को ही कार्य के प्रति उपादान कारण माना गया है पूर्व पर्याय को नही। इसका आधार यह है कि पूर्व पर्याय विनष्ट होकर ही उत्तरपर्याय की उत्पत्ति होती है इसलिये पूर्वपर्याय उत्तरपर्याय मे अनुस्यूत नहीं रहती है।
ऊपर मैने कहा है कि जीव की क्रोधपर्याय के अनन्तर क्रोध, मान, माया और लोभ मे से कोई भी पर्याय उत्पन्न हो सकती है इसलिये पूर्व क्रोध पर्याय को उत्तर क्रोधादिपर्याय का कारण मानना अयुक्त है किन्तु क्रोधादि कर्मों के उदय को ही कारण मानना युक्त है-इसी प्रकार जीव की नारकपर्याय के अनन्तर और देवपर्याय के अनन्तर या तो मनुष्य पर्याय होगी