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सिद्धि के लिए पुरुपार्थ का स्प स्पष्ट देखने में आता है और उसका यह पूरुपार्थ कार्यकारणभाव के आश्रित ही हुआ करता है। वैसे तो पुरुपार्थ को प्रक्रिया सनी पचेन्द्रिय जीवो से लेकर एकेन्द्रिय तक के सभी जीवो में पाई जाती है परन्तु कार्य सिद्धि का सकल्प और उसकी सिद्धि के लिए कार्यकारणभाव का विकल्प सज्ञी पचेन्द्रिय जीवो मे ही हुआ करता है कारण कि असज्ञी पचेन्द्रिय जीवो से लेकर एकेन्द्रिय तक के जीवो में मन का अभाव होने से कार्यसिद्धि के सङ्कल्प का अभाव पाया जाता है और इस सकल्प का अभाव रहने के कारण उनमे कार्यकारणभाव के विकल्प का भी अभाव रहा करता है।
प० फूलचन्द्र जी, प० जगन्मोहनलाल जी और उनके समपक्षी जनो के सामने सबसे वडा प्रश्न यही है कि यदि उनकी अटूट आस्था एकान्त रूप से केवलज्ञान मे प्रतिभासित वस्तु की त्रकालिक पर्यायो की नियत स्थिति पर है तो क्या वे इस वात से इन्कार कर सकते है कि उनके मन मे कार्यसिद्धि का सकल्प और मस्तिष्क मे कार्यकारणभाव का विकल्प पैदा ही नही होता है। यदि वे इस बात से इन्कार करते हैं तो उनका जो कार्यसिद्धि के लिए पुल्पार्थ बुद्धिपूर्वक होता है वह नही होना चाहिए था। लेकिन तब वे कार्यसिद्धि के लिए पुरुषार्य बुद्धिपूर्वक करते देखे जा रहे हैं तो यह निश्चित हो जाता है कि उनके मन मे कार्यसिद्धि का सकल्प और मस्तिष्क मे कार्यकारणभाव का विकल्प नियम से पैदा होता है और यह तर्क सगत बात है कि एकान्त नियतवाद मे सकल्प, विकल्प और पुरुषार्थ को कोई स्थान ही नही रह जाता है।
इस प्रकार यह बात निश्चित हो जाती है कि श्रु तज्ञानी जीव केवलज्ञान की असीमित ज्ञापन शक्ति को तो