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प्राप्त रहेगी । जैसे कुम्हार का घट निर्माण का स्वभाव असीमित है लेकिन वह निर्माण उसी घट का करता है जिसके अनुकूल उसे उपादान सामग्री तथा अन्य सहायक सामग्री प्राप्त हो जाती है । इसी प्रकार मिट्टी की योग्यताये तो असीमित हैं परन्तु उससे वही कार्य निष्पन्न होना है जिसके अनुकूल निमित्त सामग्री की समग्रता उसे प्राप्त हो जाती है ।
पूर्व मे स्वप्रत्यय परिणमन को स्वसापेक्ष परनिरपेक्ष अथवा केवल परनिरपेक्ष परिणमन भी कहा गया है इसी प्रकार स्वपरप्रत्यय परिणमन को स्वपरसापेक्ष अथवा केवल परसापेक्ष परिणमन भी कहा गया है वैसा यहा भी समझना चाहिये तथा 'स्व' का अर्थ उपादान और 'पर' का अर्थ निमित्त पूर्व मे जो कहा गया है वही बात यहा भी समझ लेना चाहिये ।
व्यंजन पर्याय का विवेचन
उपर्युक्त प्रकार अर्थपर्यायों का विवेचन करने के अनन्तर अब यहा व्यजनपर्यायो का विवेचन किया जा रहा है ।
यह बात भी पूर्व मे स्पष्ट हो चुकी है कि विश्व के समस्त पदार्थ बद्धस्पृष्ट और अबद्धस्पृष्ट दो भागो मे विभक्त है अर्थात् विश्व के बहुत से पदार्थों मे पर-पदार्थ के साथ वद्धता और स्पृष्टता दोनो बातें पायी जाती है और बहुत से पदार्थों मे केवल स्पृष्टता हो पायी जाती है वद्धता नही पायी जाती । आकाश, धर्म, अधर्म ये तीनो द्रव्य और समस्त कालद्रव्य तथा समस्त जीवो मे से केवल मुक्त जीव एव समस्त पुद्गल द्रव्यो मे केवल अणुरूप स्थिति को प्राप्त पुद्गलद्रव्य ये सब अवद्धस्पृष्ट पदार्थ हैं क्योकि ये सब पदार्थ एक दूसरे पदार्थ के साथ वद्ध न