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ली गयी है तो हम पूछते हैं कि आप यह किस आधार पर कहते है ? उक्त सूत्र से तो यह अर्थ फलित नही होता । अत इसे निमित्त कथन परक वचन न मानकर हेतु परक वचन मानना चाहिये । स्पष्ट है कि यहां पर जीव की केवलज्ञानपर्याय प्रगट होने का जो मुख्य हेतु उपादान कारण है उसे तो गौण कर दिया गया है और जो मतिज्ञान आदि पर्यायो का उपचरित हेतु था उसके अभाव को हेतु को बनाकर उसकी मुख्यता से यह कथन किया गया है । यहाँ दिखलाना तो यह है कि जब केवल ज्ञान अपने उपादान के लक्ष्य से प्रगट होता है तब ज्ञानावरणादि कर्म रूप उपचरित हेतु का सर्वथा अभाव रहता है । परन्तु इसे ( अभाव को ) हेनु बनाकर यो कहा गया है कि ज्ञानावरणादि कर्मों का क्षय होने से केवल ज्ञान प्रगट होता है । यह व्याख्यान की शैली है जिसके शास्त्रो मे पद-पद पर दर्शन होते हैं ।"
यह तत्त्वार्थ सूत्र के उल्लिखित सूत्र वाक्य का प० फूलचन्द्रजी द्वारा निकाला गया निष्कर्ष है । इसमे पडित जी का "इसे निमित्त कथन परक वचन न मानकर हेतु परक वचन मानना चाहिये" यहाँ से लेकर "परन्तु इसे ( अभाव को ) हेतु बनाकर यो कहा गया है कि ज्ञानावरणादि कर्मों का क्षय होने पर केवल ज्ञान प्रगट होता है" यहाँ तक के कथन से क्या अभिप्राय है जो प्रकृत के लिए उपयोगी हो यह मेरो समझ मे नही आया है । मुझे तो उनका यह कथन विसंगत ही जान पडता है तथा इसमे उन्होने जो यह लिखा है कि "निमित्त कथन परक वचन न मानकर हेतु परक वचन मानना चाहिये” इस विषय मे मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि इसमे निर्दिष्ट " निमित्त कथन परक वचन" और " हेतु परक वचन" इन दोनो वाक्याशो से