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किसका क्या आकार है ? इत्यादि बातो को वह मस्तिष्क के सहारे पर होने वाले श्रुतज्ञान से ही जानता है यही कारण है कि जव तक बालक का श्रुतज्ञान अल्प विकसित रहा करता है तब तक वह देखते हुए भो यह नही जान पाता है कि मणिमाला मे कितने गुरिया हैं, क्या उनका रूप है, कौन गुरिया कितना छोटा या बडा है और किसका कैसा आकार है ? इसी प्रकार केवलज्ञानी जीव वस्तु की कालिक पर्यायो को जान रहा है परन्तु वह पर्यायों को भूतता, वर्तमानता व भविष्यत्ता का विश्लेपण करके नही जानता है वह तो सभी पर्यायो से विशिष्ट वस्तु का प्रतिभासन मात्र करता है । यही कारण है कि उसके ज्ञान को विकल्पात्मक रूप नही प्राप्त होता है और यही कारण है कि पाँचो प्रकार के ज्ञानो मे मति, अवधि, मन पर्यय और केवल ज्ञानो मे विकल्पात्मक रूप न होने से नय व्यवस्था सम्भव नही है केवल श्रुत ज्ञान मे ही विकल्पात्मक रूप होने से नय व्यव - स्था सम्भव है । यही स्थिति कार्यकारणभाव के जानने में भी समझना चाहिए । अर्थात् कार्यकारणभाव विकल्पात्मक श्रुतज्ञान का ही विषय होता है मतिज्ञान, अवधिज्ञान, मन पर्ययज्ञान और केवलज्ञान का विषय नही होता है क्योंकि कौन कारण है और कौन कार्य है - यह विकल्प श्रुतज्ञान मे ही सभव है अन्य ज्ञानो मे नही । इसलिए कार्य कारणभाव के विकल्प जव श्रुतज्ञानी जीव मे ही सम्भव है तो केवल ज्ञान के आधार पर तज्ञान की स्थिति का माप करना असगत है ।
इस तरह कार्यकारणभाव को जव श्रुतज्ञान मे ही स्थान प्राप्त है और श्र ुतज्ञान अल्पता तथा पराधीनता के लिए हुए है तो स्वपरप्रत्यय कार्योत्पत्ति मे उपादानोपादेय भाव और निमित्त नैमित्तिकभाव दोनो को स्थान प्राप्त हो जाता है । यही