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कभी पुन वद्धस्थिति को न तो प्राप्त हुए है और न प्राप्त होवेगे । पुद्गलद्रव्यो मे वद्धस्थिति की प्रक्रिया मे जीवो की वद्धस्थिति की प्रक्रिया से यह विशेषता है कि जो पुद्गल अनादिकाल से अवद्धस्थिति को प्राप्त रहे है उन्होने अपनी उस अवद्धस्थिति को समाप्त कर वद्धस्थिति को भी प्राप्त किया है व प्राप्त कर सकते है । इसी प्रकार जो पुद्गल अनादिकाल से वद्धस्थिति को प्राप्त रहे हैं उन्होंने भी अपनी उस वद्धस्थिति को समाप्त कर अवद्धस्थिति को प्राप्त किया है व आगे प्राप्त कर सकते है । इस तरह सभी पुद्गल अपनी अवद्धस्थिति को समाप्त कर वद्धस्थिति को प्राप्त होते रहते है और वद्धस्थिति को समाप्त कर अवद्धस्थिति को प्राप्त होते रहते हैं ।
(३) एक जीव कभी दूसरे जीव के साथ बद्ध नहीं होता केवल पुद्गल के साथ ही बद्ध होता है जब कि पुद्गल जीव और पुद्गल दोनो के साथ यथायोग्य वद्धता को प्राप्त करता रहता है ।
(४) अनादिकाल से वद्धस्थिति को प्राप्त समस्त जीवो मे से बहुत से जीव ऐसे है जिनमे अपनी बद्धस्थिति को समाप्त करने की योग्यता तो पायी जाती है परन्तु वे कभी अपनी उस वद्धस्थिति को समाप्त नही करेगे, परन्तु वहुत से जीव ऐसे भी है जिनमे अपनी वद्धस्थिति को समाप्त करने की योग्यता ही नही है । सभी पुद्गलो मे अपनी बद्धस्थिति को समाप्त कर अवद्धस्थिति प्राप्त करने की ओर अबद्धस्थिति को समाप्त कर वद्धस्थिति प्राप्त करने की योग्यता विद्यमान है ।
(५) पुद्गलद्रव्यो का यह स्वभाव भी है कि जो पुदगल अपनी वर्तमान स्थिति मे जीवो अथवा अन्य पुद्गलो के