________________
इस तरह परपदार्थों को अवगाहित करने का उसका स्वभाव परसापेक्ष होकर ही परिणमनशील है अत जव जैसा परिणमन उन अवगाहमान पर पदार्थों का परिणमन के अनुकूल कारणो के आधार पर होता है तव उसी रूप से वे पदार्थ आकाश में अवगाहित होते है इसका आशय यह हआ कि तव आकाग के अवगाहक स्वभाव मे अवगाह्यमान उन पदार्थों के निमित्त से परिणमन स्वीकार करना अनिवार्य हो जाता है। अर्थात् जिस पर वस्तु को आकाश पहले जिस रूप से अवगाहित कर रहा था उस पर वस्तु का कालान्तर मे रूप वदल जाने पर उसको आकाश द्रव्य तव उस बदले हए रूप से हो अवगाहित करने लगता है। इससे सिद्ध होता है कि आकाश का परपदार्थों को अपने अन्दर अवगाहित करने का स्वभाव अपने परिणमन मे परपदार्थसापेक्ष है।
इस तरह आकाश के अवगाहक स्वभाव के परिणमन में परमापेक्षता होने के कारण निमित्तनैमित्तिकभाव के आधार पर कार्यकारणभाव व्यवस्था की सगति हो जाती है तथा यह बात पहले ही बतलायी जा चुकी है कि कोई भी स्वपरसापेक्षपरिणमन वस्तु स्वभाव के प्रति प्रतिनियत रहने के कारण स्वापेक्ष तो रहता ही है अत इसमे उपादानोपादेयभाव के आधार पर भी कार्यकारणभाव की सगति हो जाती है। इस तरह आकाश के अवगाहक स्वभाव के परिणमन मे निमित्तनैमित्तिकभाव और उपादानोपादेयभाव दोनो आधारो पर कार्यकारणभाव व्यवस्था की सगति हो जाने से ही कहा जाता है कि आकाश के अवगाहकस्वभाव मे होने वाले परिणमनरूप कार्य का आकाश अथवा उसका अवगाहकस्वभाव उपादानकर्ता है और अवगाह्यमान पदार्थों का परिणमन उसमे उदासीन निमित्त है।