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८६ परन्तु पदार्थ प्रतिविम्बक (दर्शन) शक्ति विवादरहित नहीं है अत' इसकी आवश्यकता क्यो है ? इस पर विचार किया जाता है।
जैन-दर्शन की यह मान्यता है कि विना पदार्थ दर्शन के पदार्थ ज्ञान नही हुआ करता है अत. वहाँ पर आत्मा मे दर्शन और ज्ञान को समान शक्ति-सम्पन्न जोडे के रूप मे स्वीकार किया गया है। तात्पर्य यह है कि जैन-दर्शन की मान्यता के अनुसार जव पदार्थ आत्मा मे प्रतिविम्वित होगा तभी आत्मा को पदार्थज्ञान होगा, अन्यथा नही। इसका कारण यह है कि जिस प्रकार प्रतिभासित होने वाले पदार्थ के क्षेत्र मे दीपक विद्यमान रहता है उस प्रकार प्रतिभासित होने वाले पदार्थ के क्षेत्र मे आत्मा की पहँच नही है लेकिन जिस प्रकार दीपक और पदार्थ का सम्बन्ध स्थापित हुए विना पदार्थ प्रतिभासित नहीं होता उसी प्रकार आत्मा और पदार्थ का सम्बन्ध स्थापित हए बिना भी पदार्थ प्रतिभासित नहीं होता। इसी आधार पर जैन दर्शन मे आत्मा मे पदार्थ को प्रतिभासित करने वाली ज्ञान शक्ति के साथ-साथ पदार्थ को प्रतिविम्बित करने वाली दर्शन शक्ति की सत्ता स्वीकार की गयी है। इस प्रकार जब पदार्थ अपने प्रतिविम्ब द्वारा आत्मा से सम्बन्ध स्थापित कर लेता है तव आत्मा उसका ज्ञान करती है अत पदार्थज्ञान के लिए पदार्थदर्शन की अनिवार्य आवश्यकता है।
आत्मा को पदार्थ प्रतिविम्बक शक्ति ही दर्शन शक्ति है
बौद्ध दर्शन मे वर्णित प्रत्यक्ष और जैन दर्शन मे वणित दर्शनोपयोग दोनो के स्वरूप मे करीब-करीव समानता पायी है लेकिन बौद्ध दर्शन मे जहाँ उसके द्वारा माने गये प्रत्यक्ष को