________________
प्रदेशो मे प्रतिविम्बित हो जाने को अवधिदर्शन और इन्द्रिय अथवा मन की सहायता के विना ही विश्व के समस्त पदार्थों के आकारो का समस्त आत्म प्रदेशो मे प्रतिविम्बित हो जाने को केवलदर्शन समझना चाहिये ।
नेत्रेन्द्रिय से होने वाले अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा रूप मतिज्ञानों में चक्षुर्दर्शन का सद्भाव कारण होता है, स्पर्शन,' रसना, नासिका और कर्ण इन्द्रियो में से किसी भी इन्द्रिय अथवा मन से होने वाले अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा रूप मतिज्ञानो मे उस-उस इन्द्रिय अथका मन से होने होने वाले अचक्षुर्दर्शन का सद्भाव कारण होता है तथा अवधिज्ञान मे अवधिदर्शन का केवलज्ञान में केवलदर्शन का सद्भाव कारण होता है। मन पर्ययज्ञान में भी मानसिक अचक्षुर्दर्शन का सद्भाव कारण होता है। पदार्थज्ञान की प्रत्यक्षता और अप्रत्यक्षता का विभाजन
इस प्रकार अवधिज्ञान, मन पर्ययज्ञान और केवलज्ञान तो सर्वथा प्रत्यक्ष हैं अर्थात् इन्द्रिय अथवा मन की सहायता के विना ही उत्पन्न होने के कारण ये तीनो ज्ञान चूकि स्वाधीन है अत करणानुयोग की विशुद्ध आध्यात्मिक दृष्टि से भी प्रत्यक्ष हैं और चूकि ये तीनो ज्ञान चूकि उक्त प्रकार से पदार्थदर्शन के सद्भाव मे ही उत्पन्न होते हैं अत स्वरूप का कथन करने वाले द्रव्यानुयोग (वस्तुविज्ञान) को दृष्टि से भी प्रत्यक्ष हैं तथा स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान ये चारो मतिज्ञान व श्र तज्ञान ये सब ज्ञान सर्वथा परोक्ष हैं अर्थात् यथासम्भव इन्द्रिय अथवा मन की सहायता से उत्पन्न होने के कारण चूकि ये ज्ञान पराधीन हैं अत करणानुयोग की विशुद्ध आध्यात्मिक दृष्टि से भी परोक्ष