________________
७६
ही स्थिति रहा करती है । अर्थात् एक व्यक्ति जब यह जानता है कि दीपक मे घटादि पदार्थो को प्रकाशित करने की योग्यता है और घटादि पदार्थों मे दीपक से प्रकाशित होने की योग्यता है यानि उक्त प्रकाशनरूप कार्य मे दीपक और घटादि पदार्थो मे अपने-अपने ढग की उपादानोपादेयभाव और निमित्तनैमित्तिकभाव पर आधारित कार्यकारणभाव व्यवस्था विद्यमान है तो इस प्रकार की जानकारी रखने वाला वह व्यक्ति यदि अपने विवक्षित उद्देश्य की पूर्ति के लिये दीपक के जरिये घटादि विवक्षित पदार्थो को प्रकाशित करना चाहता है तो उस समय वह व्यक्ति या तो घटादि विवक्षित पदार्थों को दीपक के समक्ष लाता है अथवा दीपक को उन पदार्थों के समक्ष ले जाता है । इस प्रकार इस प्रकाशनरूप कार्य मे उस व्यक्ति का पूरुपार्थ प्रेरक निमित्त होता है और तब इस प्रेरक निमित्तता के आधार पर वह व्यक्ति कर्तारूप से निमित्त होता है तथा दीपक के प्रकाशक स्वभाव की घटादि प्रकाशनरूप परिणति मे घटादि पदार्थ और घटादि पदार्थों के प्रकाशित होने की योग्यता रूप स्वभाव की प्रकाशित होने रूप परिणति मे दीपक करणरूप से निमित्त होते हैं।
समस्त विश्व का कार्यकारणभाव इसी ढग से चल रहा है तथा यह व्यवस्था प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति के लिये अनुभव, इन्द्रिय प्रत्यक्ष और युक्ति से गम्यमान है। मुझे आशा है कि प० फूलचन्द्रजी इससे वस्तु के स्वपरसापेक्ष परिणमन की परसापेक्षता, उसमे पायी जाने वाली निमित्तनैमित्तिकभाव पर आधारित कार्यकारणभाव की व्यवस्था, निमित्तो की यथायोग्य उदासीनतारूप व प्रेरकतारूप कार्यकारिता और उदासीन तथा प्रेरक निमित्तो मे पायी जाने वाली विशेषता ( विलक्षणता ) को आकने का प्रयत्न करेंगे।