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भोक्तृत्व दोनो शक्तिया पायी जाती हे | इनमे से प्रत्येक पदार्थ मे कर्तृत्व शक्ति के दो रूप पाये जाते है - एक उपादानकर्तृत्व का और दूसरा निमित्तकर्तृत्व का
प्रत्येक पदार्थ अपने परिणमन का उपादानकर्ता है क्योकि वह स्वयं ( आप ) उस परिणमनरूप परिणत होता है और वही पदार्थ अपने से भिन्न पदार्थो के परिणमन का अपने ढंग से निमित्तकर्ता होता है क्योकि उस परिणमनरूप वह स्वय (आप) परिणत न होकर अपने से भिन्न पदार्थों के उस परिणमन मे सहायक मात्र होता है । इस सम्वन्ध मे आकाश, धर्म, अधर्म, काल, दर्पण और दीपक के उदाहरण पूर्व मे दिये जा चुके है तथा आत्मा का विवेचन किया ही जा रहा है ।
सम्पूर्ण चेतन और अचेतन पदार्थो मे भोक्तृत्व की सिद्धि इस प्रकार होती है कि वे सभी पदार्थ अपने अपने परिणमन के साथ तन्मय होकर ही रहा करते है अर्थात् प्रत्येक चेतन अथवा अचेतन पदार्थ का जब जो परिणमन होता है तब वह पदार्थ स्वय ( आप ) उस रूप परिणत हो जाया करता है । प्रत्येक पदार्थ का भोक्तृत्व यही है ।
वर्तृत्व और भोक्तृत्व मे यह विशेषता है कि जहा प्रत्येक चेतन और अचेतन पदार्थ का कर्तृत्व उपादान कर्तृत्व और निमित्तकर्तृत्व के रूप मे दो प्रकार का है वहा प्रत्येक चेतन और अचेतन पदार्थ का भोक्तृत्व दो प्रकार का नही है क्योकि वस्तु विज्ञान की दृष्टि से जिस प्रकार प्रत्येक पदार्थ अपने परिणमन के साथ तन्मय होकर रहता है उस प्रकार वह दूसरे पदार्थ के परिणमन के साथ कभी तन्मय होकर नही रहता है । यह बात अनुभव, इन्द्रिय प्रत्यक्ष और युक्ति से सिद्ध है और यही कारण है जैनागम में यह सिद्धान्त स्थिर किया गया है कि