________________
एक पदार्थ कभी दूसरे पदार्थ रूप नहीं होता और न एक पदार्थ के गुणधर्म भी कभी दूसरे पदार्थ के गुणधर्म होते है। इतना ही नही, किसी भी पदार्थ का एक गुण कभी उसका दूसरा गुण नही होता और न एक गुण की पर्याय कभी दूसरे गुण की पर्याय होती है।
इसका तात्पर्य यह है कि आकाश जव अपके स्वभाव के अनुसार स्वपरावगाहक है तो वह अपने इस स्वभाव के अनुसार अपने परिणमन का उपादानकर्ता और पर के परिणमन का निमित्तकर्ता तो है परन्तु दोनो का परिणमन अपना अपना ही है। इसी प्रकार धर्मद्रव्य जव अपने स्वभाव के अनुसार स्वय निष्क्रिय रह कर जीव और पुद्गल की गति मे सहायक होता है तो वह अपने इस स्वभाव के अनुसार अपने परिणमन का उपादानकर्ता और जीव और पुद्गल के गतिरूप परिणमन का निमित्तकर्ता तो है परन्तु धर्मद्रव्य का तथा जीव और पुद्गल का परिणमन अपना अपना ही है। इसी प्रकार अधर्म द्रव्य भो जब अपने स्वभाव के अनुसार स्वय निष्क्रिय रह कर जीव और पुद्गल की स्थिति में सहायक होता है तो वह अपने इस स्वभाव के अनुसार अपने परिणमन का उपादानकर्ता और जीव और पुद्गल के स्थिति रूप परिणमन का निमित्तकर्ता तो है परन्तु अधर्म द्रव्य का तथा जीव और पुद्गल का परिणमन अपना अपना ही है । इसी प्रकार कालद्रव्य भी जब अपने स्वभाव के अनुसार स्व और पर का वर्तयिता है तो वह अपने इस स्वभाव के अनुसार अपने वृत्तिरूप परिणमन का उपादानकर्ता और पर के वृत्तिरूप परिणमन का निमित्तकर्ता तो है परन्तु परिणमन दोनो का अपना अपना ही है। इसी प्रकार प्रत्येक जीव भी जब अपने स्वभाव के अनुसार स्वपरावभासक