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समान रूप से अपने-अपने प्रतिनियतरूप मे पायी जाती है । इसे अर्थ पर्याय भी कहते हैं। यह छद्मस्थो के वचन और मन के अगोचर है, अत्यन्त सूक्ष्म है, आगम प्रमाण से (सर्वज्ञ द्वारा उपदिष्ट होने से) गम्यमान है और हानि तथा वृद्धि के निम्नलिखित छह छह भेदो द्वारा क्रमश धारावाही रूप से प्रवर्तमान है। अनन्त भागवृद्धि, असख्यातभागवृद्धि, सख्यातभागवृद्धि, सख्यात गुण वृद्धि, असख्यातगुणवृद्धि और अनन्तगुणवृद्धि इस क्रम से वृद्धि के छह विकल्प है तथा अनन्त भागहानि, असख्यात भागहानि, सख्यात भागहानि, सख्यात गुणहानि, असख्यात गुणहानि और अनन्तगुणहानि इस क्रम से हानि के भी छह विकल्प
तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ५ के "निष्क्रियाणि च ॥७॥" सूत्र की सर्वाथसिद्धिटीका मे भो स्वसापेक्षपरनिरपेक्ष परिणमन के सम्बन्ध मे निम्नलिखित कथन पाया जाता है।
"द्विविध उत्पाद स्वनिमित्त परप्रत्ययश्च । स्वनिमित्तस्तावदनन्तानामगुरुलघुगुणानामागमप्रामाण्यादभ्युपगम्यमानाना पट्स्थानपतितया वृद्ध्या हान्या च प्रवर्तमानानो स्वभावादेतेषामुत्पादो व्ययश्च ।”
अर्थ-उत्पाद दो प्रकार का है-स्वनिमित्त (स्वसापेक्षपरनिरपेक्ष) और परप्रत्यय (स्वपरसापेक्ष ) । स्वनिमित्त (स्वसापेक्षपरनिरपेक्ष) उत्पाद वह है जो अनन्त अगुरुलघुगणो (अगुरुलघुगुण के अनन्त अविभागि प्रतिच्छेदरूप शक्त्यशो) मे षट्स्थानपतित हानि और वृद्धि के रूप मे स्वभाव से (परनिरपेक्ष होकर) होता है तथा जो आगम प्रमाण के आधार पर ही स्वीकृत करने योग्य है।