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दोनो 'परिणमन करते हुए भी अपने सामान्य रूप को नहीं छोडते है। इस तरह दोनो ही उत्पाद, व्यय और ध्रुवता को लिये हुए हैं।
(३) परिणमन कार्य कहलाता है और जिसमे या जिसका वह परिणमन होता है अर्थात् जो परिणमित यानि कार्यरूप परिणत होता है वह कारण कहलाता है । इस तरह वस्तु के परिणमन मे वस्तु कारण है और वस्तु के स्वभाव के परिणमन मे वस्तु का स्वभाव कारण है तथा दोनों में होने वाला अपना-अपना वह परिणमन कार्य कहलाता है।
(४) चूकि वस्तु के परिणमन मे वस्तु स्वय ( आप ) परिणमित यानि कार्यरूप परिणत होती है और वस्तु स्वभाव के परिणमन मे वस्तु स्वभाव स्वय (आप) परिणमित यानि कार्यरूप परिणत होता है अत' दोनो अपने-अपने परिणमन के उपादान कारण माने गये हैं तथा दोनो मे विद्यमान परिणमित होने की योग्यता उपादानशक्ति कहलाती है।
(५) वस्तु मे होने वाला परिणमन द्रव्यपरिणमन कहलाता है और वस्तु के स्वभाव में होने वाला परिणमन गुणपरिणमन कहलाता है।
अव प्रश्न यह उपस्थित होता है कि वस्तु अथवा वस्तु के स्वभाव मे विद्यमान परिणमित होने की योग्यता (उपादानशक्ति) के आधार पर होने वाला वह परिणमन क्या स्वयं ( अपने आप ) ही हुआ करता है ? तो इसका समाधान यह है कि वस्तु मे उसकी अपनी स्वत सिद्ध योग्यता (उपादानशक्ति) के आधार पर जो परिणमन होता है वह परिणमन उसके