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वस्तु स्वरूप प्रतिनियत भी है अब आगे यह बतलाया जा रहा है कि जिस प्रकार वस्तु का स्वरूप स्वत सिद्ध है उसी प्रकार वह प्रतिनियत भी है क्योकि प्रत्येक वस्तु स्व को छोड कर अन्य किसी भी वस्तु मे नही पाये जाने वाले स्वरूप के आधार पर ही दूसरी सभी वस्तुओ से अपनी भिन्नता सुरक्षित रखती है। इस तरह प्रत्येक वस्तु के स्वरूप के प्रतिनियत होने (स्व को छोड कर अन्य किसी भी वस्तु मे नही पाया जाने) के कारण ही विश्व की वस्तुओ की सख्यानियत परिमाण मे अनन्त सिद्ध होती है। समयसार मे वस्तु के स्वरूप को प्रतिनियत ही स्वीकार किया गया है। "एयत्तपिच्छयगओ समओ सव्वत्थ सु दरो लोए॥"
(गाथा ३ का पूर्वार्ध) टीका–समय शब्देनात्र सामान्येन सर्व एवार्थोऽभिधीयते। समयत एकीभावेन स्वगुणपर्यायान् गच्छतीति निरुक्त । तत सर्वत्रापि धर्माधर्माकाशकालपुद्गलजीवद्रव्यात्मनि लोके ये यावन्त केऽप्यस्तेि सर्व एव स्वकीयद्रव्यान्तर्मग्नानन्तस्वधर्मचक्रचुम्बिनोऽपि परस्परमचुम्वन्तोऽत्यन्तप्रत्या सत्तावपि नित्यमेव स्वरूपाद पतन्त. पररूपेणापरिणमवादविनष्टानन्त व्यक्तित्वाह - कोत्कीर्णा इव तिष्ठन्त समस्तविरुद्धाविरुद्धकार्यहेतुतया शश्वदेव विश्वमनगढन्तो नियतमेकत्व निश्चयगतत्वेनैव सौन्दर्य मा पद्यन्ते, प्रकारान्तरेण सर्व सकरादिदोषापत्ते.।।
गाथार्थ एकत्व और निश्च्य को प्राप्त अर्थात् अखण्ड एकत्व को प्राप्त समय (पदार्थ) ही लोक मे सर्वत्र सुन्दरता को प्राप्त हो रहा है । अर्थान् वस्तु की कोटि मे गिना जाता है।