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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता * 43
62. ईसत्थं - थोड़े को अधिक करने की कला 63. रूप्पवायं - तलवार आदि की मूठ बनाने की कला 64. आससिक्खं - अश्व शिक्षा 65. हत्थि सिक्खं - हस्ति शिक्षा 66. धणुवेयं - धनुर्वेद 67. हिरण्णपागं, सुवन्नपागं, मणिपागं, धातुपागं - हिरण्यपाक सुवर्णपाक, ___ मणिपाक व धातुपाक बनाने की कला 68. बाहुजुद्धं, दण्डजुद्धं, मुट्ठिजुद्धं, अट्ठिजुद्धं, जुद्धं, निजुद्धं, जुद्धाईजुद्धं -
बाहुयुद्ध, दण्डयुद्ध, मुष्ठियुद्ध, यष्टियुद्ध, युद्ध, नियुद्ध, युद्धातियुद्ध करने
की कला 69. सुत्ताखेडं, नालियाखेडं, वट्टखेडं, चम्मखेडं - सुत बनाने की, नली बनाने
का, गेंद खेलने की, वस्तु के स्वभाव जानने की व चमड़ा बनाने की कला 70. पत्तच्छेज, कड़गच्छेजं - पत्र छेदन एवं कड़ग वृक्षांग विशेष छेदने की
कला 71. संजीवं, निज्जीवं - संजीवन, निर्जीवन की कला 72. सउणरुयं - पक्षी के शब्द से शुभाशुभ जानने की कला
पुरुषों के लिए कला विज्ञान की शिक्षा देकर महाराज ऋषभदेव ने महिलाओं के जीवन को उपयोगी व शिक्षा सम्पन्न करना भी आवश्यक समझा। अपनी पुत्री ब्राह्मी के माध्यम से उन्होंने लिपि ज्ञान तो दिया ही, साथ में महिला गुणों के रूप में उनको 64 कलाएँ भी सिखाई। वे 64 कलाएँ इस प्रकार हैं1. नृत्य कला
2. औचित्य 3. चित्रकला
4. वादित्रकला मन्त्र ज्ञान
विज्ञान 9. दम्भ
जलस्तम्भ 11. गीतमान
12. तालमान 13. मेघवृष्टि
फलाकृष्टि 15. आरामरोपण
16. आकारगोपन 17. धर्मविचार
18. शकुनसार 19. क्रियाकल्प
20. संस्कृत जल्प 21. प्रासादनीति
22. धर्मरीति 23. वर्णिकवृद्धि
24. सुवर्णसिद्धि 25. सुरभितेलकरण
26. लीलासंचरण
तन्त्र
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