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आगमद्रव्यमास] १७४, जैन-लक्षणावलो
[प्रागमद्रव्यसिद्ध स्थापनारूप अक्षरों की रचना को भी प्रागमद्रव्य- शमस्वरूप का जानकार होता हुआ जो वर्तमान में मंगल कहते हैं।
तद्विषयक उपयोग से रहित हो उसे पागमद्रव्यशम प्रागमद्रव्यमास-पागमतो मास-शब्दार्थज्ञाता तत्र कहते हैं। चानुपयुक्तः । (व्यव. भा. मलय. व.१-१४)। आगमद्रव्यश्रमरण-द्रव्यश्रमणो द्विधा आगमतो 'मास' शब्द के अर्थ के जानने वाले, पर वर्तमान में नोपागमतश्च । प्रागमतो ज्ञाताऽनुपयुक्तः । (दशवै. उसमें अनुपयुक्त पुरुष को प्रागमद्रव्यमास कहते हैं। नि. हरि. व. ३-१५३)। प्रागमद्रव्ययोग-तत्थ प्रागमदव्वजोगो णाम जो श्रमणशास्त्र का ज्ञाता होकर तद्विषयक उपयोग जोगपाहुडजाणो अणुवजुत्तो। (धव. पु. १०, पृ. से रहित होता है उसे पागमद्रव्यश्रमण कहते हैं । ४३३)।
प्रागमद्रव्यश्रुत-१. से किं तं आगमतो दव्वसुझं? योगविषयक प्राभूत के ज्ञायक, किन्तु वर्तमान में जस्स णं सुए त्ति पयं सिक्खियं ठियं जियं जाव, णो उसके उपयोग से रहित पुरुष को प्रागमद्रव्ययोग अणुप्पेहाए । कम्हा ? अणुवोगो दव्वमिति कटु । कहते हैं।
नेगमस्स णं एगो अणुव उत्तो पागमतो एगं दव्वसुग्रं प्रागमद्रव्यवन्दना -वन्दनाव्यावर्णनप्राभतज्ञोऽन- जाव 'कम्हा' । जइ जाणइ अणुवउत्ते न भवइ । से पयुक्त आगमद्रव्यवन्दना । (मूला. वृ. ७-७७)। तं आगमतो दव्वसुधे । (अनुयो. सू. ३३, वन्दना के वर्णन करने वाले प्राभूत के ज्ञायक, प. ३२)। २. यस्य कस्यचित् श्रुतमिति पदं श्रुतकिन्तु वर्तमान में अनुपयुक्त जीव को पागमद्रव्य- पदाभिधेयमाचारादिशास्त्रं शिक्षितं स्थितं यावद्वावन्दना कहते हैं।
चनोपगतं भवति स जन्तुस्तत्र वाचना-पृच्छनादिआगमद्रव्यवर्गणा-वग्गणपाहुडजाणो अणुव- भिवर्तमानोऽपि श्रुतोपयोगेऽवर्तमानत्वादागमत:जुत्तो पागमदव्ववग्गणा णाम। (धव. पु. १४, पृ. आगममाश्रित्य-द्रव्यश्रुतमिति समुदायार्थः । (अनुयो. ५२)।
मल. हेम.वृ. ३३)। ३. यस्य श्रुतमिति पदं शिक्षितावर्गणाप्राभूत का ज्ञाता होकर जो तद्विषयक उपयोग दिगुणान्वितं ज्ञातम्, न च तत्रोपयोगः, तस्य आगमतो से रहित होता है उसे पागमद्रव्यवर्गणा कहते हैं। द्रव्यश्रुतम् । (उत्तरा. नि. शा. वृ. १-१२, पृ. ८)। प्रागमद्रव्यवंदना-वेयणपाहुडजाणो अणुवजुत्तो २ जिसके 'श्रुत'पद और उसके वाच्यभूत प्राचारागादि आगमदव्ववेयणा । (धव. पु. १०, प. ७)।
आगम शिक्षित व स्थित आदि के क्रम से वाचनोपवेदनाविषयक प्राभूत के ज्ञायक, किन्तु वर्तमान में गत तक (अनुयोगद्वार सूत्र १३) गुणों से युक्त हों, उसके उपयोग से रहित जीव को आगमद्रव्यवेदना वह वाचना-पच्छना आदि से युक्त होता हुया भी कहते हैं।
जब श्रुतोपयोग से रहित होता है तब उसे पागमप्रागमद्रव्यव्यवहार-पागमतो व्यवहारपदज्ञाता द्रव्यश्रुत कहा जाता है। तत्र चानुपयुक्तः । (व्यव. भा. मलय. वृ.१-६)। प्रागमद्रव्यसामायिक-सामायिकवर्णनप्राभतज्ञायी जो जीव व्यवहार पद का ज्ञाता होकर तद्विषयक अनुपयुक्तः प्रागमद्रव्यसामायिकं नाम । (मला. उपयोग से रहित हो उसे पागमद्रव्यव्यवहार वृ.७-१७; अन. ध. स्वो. टी. ८-१६)। कहते हैं।
सामायिक के वर्णन करने वाले प्राभूत का ज्ञाता पागमद्रव्यवत-भाविव्रतत्वग्राहिज्ञानपरिणतिरा- होकर जो वर्तमान में उसके उपयोग से रहित है त्मा आगमद्रव्यवतम् । (भ. प्रा. विजयो. टी. उसे पागमद्रव्यसामायिक कहते हैं। ११८५)।
प्रागमद्रव्यसिद्ध - सिद्धस्वरूपप्रकाशनपरिज्ञानपआगामी काल में व्रत के ग्रहण करने वाले ज्ञान से रिणतिसामर्थ्याध्यासित आत्मा अागमद्रव्यसिद्धः । परिणत होने वाले प्रात्मा को प्रागमद्रव्यव्रत (भ. प्रा. विजयो. टी. १); पागमद्रव्यसिद्धः सिद्धकहते हैं।
प्राभूतज्ञः सिद्धशब्देनोच्यतेऽनुपयुक्तः। (भ. प्रा. प्रागमद्रव्यशम-द्रव्यशम: आगमतः शमस्वरूप- विजयो. टी. ४६) । परिज्ञानी अनुपयुक्तः । (ज्ञानसार व. ६, पृ. २२)। सिद्धों के स्वरूप का निरूपण करने वाले प्रागम का
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