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प्रागमद्रव्यनारक] १७३, जैन-लक्षणावली
[प्रागमद्रव्यमंगल निरूप्यते, तं यो वेत्ति, न च साम्प्रतं तन्निरूप्येऽर्थ (भ. प्रा. विजयो. टी. ११६)। उपयुक्तोऽन्यगतचित्तत्वात् । स नमस्कारयाथात्म्य- प्रमाण, नय और निक्षेप आदि के द्वारा प्रतिक्रमण ग्राहिश्रुतज्ञानस्य कारणत्वादागमद्रव्यनमस्कार इत्यु- आवश्यक विषयक प्रागम का ज्ञाता होकर जो वर्तच्यते । (भ. प्रा. विजयो. टी. ७५३)।
मान में उसके उपयोग से रहित है उसे आगमद्रव्यनमस्कारविषयक प्राभत का ज्ञाता होकर जो वर्त- प्रतिक्रमण कहते हैं। मान में तद्विषयक उपयोग से रहित होता हया आगमद्रव्यबन्ध---जो सो पागमदो दव्वबंधो णाम उसके अर्थ का निरूपण नहीं कर रहा है उसे तस्स इमो णिसो-ठिद जिदं परिजिदं वायणोवआगमद्रव्य-नमस्कार कहते हैं।
गदं सुत्तसमं अत्थसमं गंथसम णामसमं घोससमं । अागमद्रव्यनारक - णेरइयपाहुडजाणो अणु- जा तत्थ वायणा वा पुच्छणा वा पडिच्छणा वा वजुत्तो आगमदव्वणेरइयो। (धव. पु. ७, पृ. ३०)। परियट्टणा वा अणुपेहणा वा थय-थुदि-धम्मकहा वा नारकप्राभृत का ज्ञाता होकर वर्तमान में अनुप- जे चामण्णे एवमादिया अणुवजोगा दव्वे त्ति कटु युक्त जीव को पागमद्रव्यनारक कहते हैं।
जावदिया अणुवजुत्ता भावा सो सव्वो आगमदो प्रागमद्रव्यपरिहार-तत्र आगमतः परिहार- दव्वबंधो णाम । (षट्ख.-धव. पु. १४, पृ. २७)। शब्दार्थज्ञाता तत्र चानुपयुक्तः । (व्यव. भा. मलय. स्थित, जित एवं परिजित प्रादि जो बन्ध सम्बन्धी वृ. २-२७, पृ. १०)।
पागम के नौ अधिकार हैं; उनका ज्ञाता होकर परिहार शब्द के अर्थ के जानने वाले, किन्तु वर्तमान तद्विषयक वाचना-पच्छनादि उपयोगविशेषों से जो में तद्विषयक उपयोग से रहित पुरुष को प्रागम- वर्तमान में रहित है उसे पागमद्रव्यबन्ध कहते हैं । द्रव्यपरिहार कहते हैं।
प्रागमद्रव्यबन्धक -बंधयपाहुडजाणया अणुवपागमद्रव्यपूर्ण-पागमतो द्रव्यं पूर्ण-पदस्यार्थ- जुत्ता आगमदव्वबंधया णाम । (धव. पु.७, पृ. ४)। ज्ञाता अनुपयुक्तः। (ज्ञानसार वृ. १-८)। बन्धकविषयक प्राभृत का ज्ञाता होकर जो वर्तमान
में उसके उपयोग से रहित होता है उसे पागमउपयोग से रहित होता है उसे आगमद्रव्यपूर्ण द्रव्यबन्धक कहते हैं। कहते हैं।
प्रागमद्रव्यभाव-भावपाहुडजाणो अणुवजुत्तो आगमद्रव्यपूर्वगत-पुब्वमण्णवपारो अणुवजुत्तो । अागमदव्वभावो । (धव. पु. ५, पृ. १८४) । आगमदव्वपुव्वगयं । (धव. पु. ६, पृ. २११)। भावविषयक प्राभूत का ज्ञायक, किन्तु वर्तमान में पूर्वगत श्रुत के पारगामी, किन्तु वर्तमान में उसके उसके उपयोग से रहित जीव को प्रागमद्रव्यभाव उपयोग से रहित पुरुष को आगमद्रव्यपूर्वगत कहते हैं। कहते हैं।
आगमद्रव्यमंगल---१. प्रागमोऽणुवजुत्तो मंगलप्रागमद्रव्यप्रकृति-- पागमो गंथो सुदणाणं दुवा- सद्दाणुवासियो वत्ता । तन्नाणल द्धिसहियोऽवि नोवलसगमिदि एयट्ठो। आगमस्स दब्बं जीवो पागम- उत्तो त्ति तो दव्वं ।। (विशेषा. २६) । २. तत्र दव्व, सा चेव पयडी आगमदव्वपयडी। (धव. पु. प्रागमतः खल्वागममधिकृत्य, प्रागमापेक्षमित्यर्थः । १३, पृ. २०३)।
xxx तत्रागमतो मंगलशब्दाध्येता अनुपयुक्तो आगमद्रव्य से अभिप्राय जीव का है । वही द्रव्यमंगलम्, 'अनुपयोगो द्रव्यम्' इति वचनात् । प्रकृति प्रागमद्रव्यप्रकृति कही जाती है । तात्पर्य यह (प्राव. नि. हरि. वृ. १, पृ. ५)। ३. तत्थ आगमदो कि जीवप्रकृतिविषयक आगम के ज्ञाता, किन्तु वर्त- दव्वमंगलं णाम मंगलपाडजाणो अणुवजुत्तो, मान में अनुपयुक्त जीव को आगमद्रव्य प्रकृति मंगलपाहुडसद्दरयणा वा, तस्सत्थट्ठवणक्ख ररयणा कहते हैं।
वा । (धव. पु १, पृ. २१) । आगमद्रव्यप्रतिक्रमरण-प्रमाण-नय-निक्षेपादिभिः ३ जो जीव मंगलप्राभत का ज्ञाता होकर वर्तमान में प्रतिक्रमणावश्यकस्वरूपज्ञ-सूत्रानुपपुक्त: प्रत्ययप्रति- तद्विषयक उपयोग से रहित होता है उसे, अथवा क्रमणकारणत्वादागमद्रव्यप्रतिक्रमणशब्देनोच्यते । मंगलप्राभत की शब्दरचना या उक्त प्राभूतार्थ की
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