Book Title: Jain Lakshanavali Part 1
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 425
________________ ४ संख्या ६३ कर्मप्र. मलय. कर्मप्रकृति वृत्ति वृ. ६४ कर्मप्र. यशो. कर्मप्रकृति टीका टी. ६५ कर्मवि. ग. कर्म विपाक: ६६ कर्म वि. पू. कर्मविपाक व्याख्या व्या. ६७ कर्मवि. ग. कर्मविपाक वृत्ति कर्मविपाक कर्मविपाक वृत्ति कर्मस्तव ७१ कर्मस्त. गो. कर्मस्तव वृत्ति वृ. ७२ | कल्पसू. ७० ६८ ६६ कर्मवि. दे. स्वो. वृ. कर्मस्त. ७३ संकेत ७५ ७६ ७४ कल्पसू. परमा. व. कर्मवि. दे. ५ ८३ कल्पसू. स. वृ. ८४ ७७ जयध. ७८ कार्तिके. ७६ कार्तिके. टी. क्षत्रचू. ८१ गद्यचि. ८२ गुण. क्र. गु. गु. ष. ग्रन्थ नाम विनय. वृ. कसाय. पा. कसायपाहुड सुत्त 1 कसाय.पा. कसायपाहुड चूर्णिसूत्र चू. गु. गु.ष. स्वो वृ. Jain Education International कल्पसूत्र कल्पसूत्रवृत्ति "" कसा पाहुड टीका ( जयधवला ) कार्तिकेयानुप्रेक्षा " टीका क्षत्रचूडामणि... गद्य चिन्तामणि गुणस्थानकमारोह गुरुगुणपत्रिशिका गुरुगुणषट्त्रिंशिका वृत्ति जैन - लक्षणावली ग्रन्थकार मलयगिरि उपाध्याय यशोविजय गर्ग महर्षि परमानन्द सूरि देवेन्द्रसूर 12 गोबिन्द गणी भद्रबाहु समयसुन्दर गणी विनयविजय गणी गुणधराचार्य यतिवृषभाचार्य वीरसेनाचार्य और जिनसेनाचार्य स्वामिकुमार शुभचन्द्राचार्य वदर्भासह सूरि | रत्नशेखरसूरि 27 " For Private & Personal Use Only प्रकाशक मुक्ताबाई ज्ञानमन्दिर डभोई ई. १९३७ (गुजरात) जैन आत्मानन्द सभा, भाव नगर "1 " आत्मानन्द जैन सभा, भाव नगर वीर शासन संघ, कलकत्ता प्रकाशन काल 33 " वि. १९७२ 17 " " प्राचीन पुस्तकोद्धारफंड, सूरत ई. १६३६ ई. १९३४ " वि. १९७२ " ई. १६१५ ई. १६५५ दि. जैन संघ चौरासी- मथुरा ई. १९४४ प्रादि वि. सं. २०१६ राजचन्द्र जैन ज्ञास्त्रमाला, अगास 35 " टी. एस. कुप्पूस्वामी शास्त्री, ई. १६.०३ तंजोर ई. १९१६ आत्मतिलक ग्रन्थ सोसायटी, वि. सं. १६७५ अहमदाबाद जैन आत्मानन्द सभा, वि.सं. १९७१ भावनगर www.jainelibrary.org

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