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३. संशय- मैं हूं या नहीं? आत्मा के सम्बन्ध में यह संशय, आत्मा को ही
प्रमाणित करता है। अचेतन को अपने अस्तित्व में कभी संशय नहीं होता। 'यह है या नहीं' ऐसा ईहा या विकल्प चेतन के सिवाय संभव
नहीं। ४. गुण-गुणी का अविनाभाव-चैतन्य गुण है और चेतन गुणी। गुणी के
अभाव में गुण का अस्तित्व कहां टिकेगा?२३ जैसे-घट के रूपादि गुणों से घट का अस्तित्व सिद्ध होता है। ज्ञानादि गुणों से आत्मा की प्रतीति होती है। गुण और गुणी का अविनाभावी सम्बन्ध है।२४ चैतन्य प्रत्यक्ष है। चेतन प्रत्यक्ष नहीं है। परोक्ष गुणी की सत्ता प्रत्यक्ष गुण प्रमाणित कर रहा है।
पूज्यपाद अकलंक, हरिभद्र, जिनभद्रगणि, प्रभाचंद्र, विद्यानंद, गुणरत्न, मल्लिषेण आदि दार्शनिकों ने विविध युक्तियों से आत्मा के अस्तित्व की पुष्टि की है।
पूज्यपाद ने सर्वार्थसिद्धि में उल्लेख किया-श्वासोच्छ्वासरूप कार्य से क्रियावान आत्मा का अस्तित्व असंदिग्ध है। २५ श्वासोच्छवासरूप कार्य का जो कर्ता है, वही आत्मा है।२६ जिनभद्र क्षमाश्रमण का अभिमत अकलंक देव का ही अनुसरण कर रहा है।
घट-पट आदि पुद्गल द्रव्य प्रत्यक्ष हैं, वैसे आत्मा प्रत्यक्ष नहीं। इसकी प्रतीति कारण व्यापार द्वारा होती है। रथ के चलने की क्रिया सारथि के प्रयत्न से है, वैसे ही शरीर की व्यवस्थित क्रिया जिसके प्रयत्न से होती है, वही आत्मा है।२८
आत्मा इन्द्रिय से भिन्न है। इन्द्रियां पदार्थ को जानने का माध्यम हैं। जानने वाला अन्य है। इन्द्रियों के नष्ट होने पर भी पूर्व दृष्ट या श्रुत ज्ञान स्मृति-प्रकोष्ठ में विद्यमान रहता है। इसलिये इन्द्रियां ज्ञान का कारण हैं, कर्ता नहीं। ___इन्द्रियां सिर्फ मूर्त द्रव्य को जानती हैं, अमूर्त को नहीं। आत्मा अमूर्त है। अतः इन्द्रिय द्वारा ज्ञात होने से अस्तित्व नकारा नहीं जा सकता। अरूपी की बात छोड़ दें, आणविक सूक्ष्म पदार्थ, जो रूपी हैं वे सभी इन्द्रियगोचर नहीं हैं। इन्द्रिय-प्रत्यक्ष को एकमात्र प्रमाण मानना-इससे कोई तथ्य सिद्ध नहीं होता।
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- जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनशीलन