Book Title: Jain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Author(s): Naginashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 248
________________ नंदी सूत्र ६ और प्रज्ञापना में सिद्ध जीवों के अनंतर एवं परस्पर दो भेद हैं। अनंतर सिद्धों के पन्द्रह प्रकार हैं। जिनका ऊपर जिक्र कर चुके हैं। मोक्ष और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भारतीय दर्शन मूल्यपरक दर्शन है। मूल्यों की महत्ता और उपादेयता देश, काल से आक्रांत नहीं होती। सदा जीवंत है। प्राचीन वाङ्मय में चार प्रकार के पुरुषार्थ की चर्चा है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन्हें मूल्यों के रूप में व्याख्यायित करें तो सर्वोच्च मूल्य है-मोक्ष। पश्चिमी जगत में नैतिकता एवं समाज हितकारी प्रवृत्तियों की प्रधानता है वहां भारतीय मनीषियों ने दुःखों के आत्यन्तिक विनाश को मुख्यता देकर इससे संदर्भित सभी विषयों को अन्तर्गर्भित कर दिया है। मुख्य ध्येय है-मोक्ष-प्राप्ति। बौद्ध दर्शन के अनुसार मोक्ष में जीव का अभाव है। विद्यानन्दी ने कहा-बौद्धों की यह मान्यता न्यायसंगत नहीं है। क्योंकि मोक्ष में जीव के अभाव को सिद्ध करने वाला न तो कोई निर्दोष प्रमाण है, न कोई सम्यक् हेतु। दीपक बुझ जाने से प्रकाश का अंत मानना भी अनुचित है। प्रकाश का अंत नहीं होता बल्कि तैजस् परमाणु अंधकार में रूपान्तरित हो जाते हैं। उसी प्रकार मोक्ष में जीव का विनाश नहीं, कर्म क्षय होते ही आत्मा अपनी शुद्ध चेतनावस्था में परिवर्तित हो जाती है। ___ मुक्त जीव सर्वलोकव्यापी भी नहीं होते। कारण संसारी जीव के संकोचविस्तार का हेतु शरीर नाम कर्म है। मोक्ष में नाम कर्म का अभाव है। अतः कारण के बिना कार्य संभव नहीं। न्याय-वैशेषिक, कुमारिल भट्ट आदि का सिद्धांत है कि बुद्धि, सुखदुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म; अधर्म, संस्कार प्रभृति का समूल उच्छेद होना ही मोक्ष है। जैनों को मोक्ष का यह स्वरूप मान्य नहीं है।७७ अद्वैत वेदान्ती मोक्ष को ज्ञान स्वरूप न मानकर केवल अनन्त सुख स्वरूप मानते हैं, आनन्द को चिद्रूपता की तरह एकान्त नित्य मानना जैनों को स्वीकार नहीं। संसार में एकान्त नित्य या एकान्त अनित्य कोई वस्तु नहीं है बल्कि नित्यानित्य है। मोक्ष का स्वरूप : विमर्श । २२९.

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