Book Title: Jain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Author(s): Naginashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 259
________________ लोक से - सबसे कम ऊर्ध्वलोक से, अधोलोक से संख्येय गुण अधिक, तिर्यक् लोक से उनसे संख्येय गुण अधिक, सबसे अल्प समुद्र से मुक्त होने वाले। द्वीप से मुक्त होने वाले उनसे संख्येय गुण अधिक। प्रश्न - क्या सिद्ध बढ़ते हैं अथवा अवस्थित रहते हैं ? उत्तर - सिद्ध बढ़ते हैं। घटते नहीं। अवस्थित रहते हैं। प्रश्न - कितने काल तक बढ़ते हैं ? उत्तर - जघन्य एक समय, उत्कृष्ट आठ समय तक। प्रश्न – किस संघयन में सिद्ध होते हैं ? उत्तर - वज्र ऋषभ नाराच संघयन में। प्रश्न – किस संस्थान में सिद्ध होते है ? उत्तर - छह संस्थानों में से किसी भी संस्थान से। प्रश्न - कितने वर्ष की आयु में सिद्ध होते हैं ? उत्तर - जघन्य साधिक आठ वर्ष, उत्कृष्ट करोड़ पूर्व की आयु वाले। जीव के चरम विकास की आध्यात्मिक उपलब्धि मोक्ष है। सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की समन्विति ही मोक्ष के अवरोधक तत्त्वों को तोड़ने में सक्षम है। चिकित्सा शास्त्र में चार बातें प्रमुख होती हैं रोग, रोगी की प्रकृति, रोग की कालावधि और रोग की फलदान शक्ति। इनके आधार पर रोग एवं रोगी की प्रकृति का उपचार किया जाता है। वैसे ही अध्यात्म के क्षेत्र में बंध, बंध के हेतु, मोक्ष, मोक्ष के साधनों का वर्णन है। कर्म का स्वभाव, कर्माणुओं की मात्रा, कालावधि और कर्मों के फलदान की शक्ति आदि का ज्ञान जरूरी है। रोगोपचार में पथ्य एवं अनुपान का जो स्थान है वही स्थान है मोक्षोपयोगी साधना का। संदर्भ सूची १. सांख्य तत्त्व कौमुदी पृ. ३२६। २. हमारी परम्परा (वियोगी हरि) पृ. ३६९। .२४०० जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन

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