________________
मोक्ष प्राप्ति के पूर्व की कुछ विशेष भूमिकाएं
मोक्ष में मुक्त जीवों का समान स्तर है किन्तु क्षेत्र, काल, गति, लिङ्ग, तीर्थ, चारित्र प्रत्येक बुद्ध-बुद्ध बोधित, ज्ञान, अवगाहना, अंतर, संख्या और अल्प-बहुत्व इन बारह अनुयोगों से सिद्धों में भेद पाया जाता है । १०५
१. क्षेत्र-क्षेत्र से मुक्त आत्मा तीनों लोक से सिद्ध होती है। ऊर्ध्वलोक में पंडकवन से, तिर्यक् लोक में मनुष्य लोक से, अधोलोक में महाविदेह की विजय से ।
२. काल - अवसर्पिणी काल में भरत आदि क्षेत्रों में जन्म की अपेक्षा तीसरेचौथे अर में तथा सिद्धत्व की अपेक्षा तीसरे, चौथे एवं पांचवें अर में सिद्ध होते हैं। महाविदेह में यह मर्यादा नहीं है। वहां सदा चौथा आरा ही चलता है।
३. गति - चारों गतियों में से एक मनुष्य गति ही मुक्ति जाने के योग्य है । यही मोक्ष का सिंहद्वार है।
४. लिङ्ग - वेद अर्थात विकार । नवमें गुणस्थान के अंत में विकार विलय हो जाते हैं। अतः अवेदी अवस्था में सिद्ध होते हैं।
५. तीर्थ-तीर्थ-अतीर्थ दोनों अवस्थाओं में सिद्ध हो सकते हैं।
६. चारित्र - मुक्ति के अधिकारी एक यथाख्यात चारित्र वाले ही होते हैं ।
७. प्रत्येक बुद्ध बोधित- प्रत्येक बुद्ध, स्वयं बुद्ध, बुद्ध बोधित इन तीनों में से कोई भी मुक्त हो सकता है।
८. ज्ञान - पांच ज्ञान में से मात्र केवलज्ञानी ही मुक्त होते हैं।
९.
अवगाहना – जघन्य सात हाथ उत्कृष्ट ५०० धनुष्य की अवगाहना वाले सिद्ध होते हैं।
१०. अंतर - निरंतर आठ समय तक सिद्ध हो सकते हैं। अंतर पड़े तो जघन्य २ समय, उत्कृष्ट ६ महीने का व्यवधान होता है।
११. संख्या - एक समय में जघन्य १ और उत्कृष्ट १०८ सिद्ध हो सकते हैं। १२. अल्प-बहुत-सबसे कम नपुंसक लिंग सिद्ध, उनसे स्त्री लिंग सिद्ध संख्यात गुणा, उनसे पुरुष लिंग सिद्ध संख्यात गुणा हैं।
अन्य प्रकार से
संहरण से मुक्त सबसे अल्प, जन्म-मुक्त उनसे संख्यात गुणा अधिक । मोक्ष का स्वरूप : विमर्श
२३९०