Book Title: Jain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Author(s): Naginashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 263
________________ ८९. स्थानांग ८।३। ९०. गीता, २।५८ ९१. तत्त्वार्थ वार्तिक १।४।१२। ९२. स्थानांग, स्था. १ सूत्र १६। ९३. शांत सुधारस निर्जरा भावना २।३। ९४. उधृतः युगबोध रसायन, कक्षा ११ पृ. १६। ९५. वही, पृ. १५८, १८८ ९६. वही, पृ. २६८।२६९/ ९७. समवायांग, समवाय. ७/ ९८. तत्त्वार्थ सूत्र, ९।२८। ९९. समवायांग, ८। सर्वार्थ सिद्धि टीका ९।४४। १००. मुण्डकोपनिषद् १।१।८। १०१. योग भाष्य, २।३२। १०२. तत्त्वार्थ सूत्र, ९।३। १०३. भाव पाहुड १२२॥ १०४. इसि भासियाई २१।१३। १०५. त. सू. १०।९। - जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन

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