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आजीवन सम्बन्ध रहा। आठवें जन्म में वह विकासशील क्षेत्र में जन्मी। १९वीं शताब्दी थी। कला और कारीगरी में गहरी रुचि थी। नौंवे जन्म में वह प्रीटोरिया नगर की एक छात्रा थी।
इस बालिका के नौ जन्मों के संस्मरणों से एक ही तथ्य परिलक्षित होता है। मनुष्य के विकास क्रम में सतत धारावाहिकता है। वह पिछले जन्मों के संस्कारों के साथ नया जीवन प्रारंभ करता है। यह सब कार्मण शरीर से सम्बन्धित है। कर्म सिद्धांत और शारीरिक चिह्न
पुनर्जन्म के अस्तित्व की खोज में अनुरक्त डॉ. स्टीवेन्सन ने उल्लेख किया-जीवन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें मृत्यु के बाद नई देह धारण करता है। मृत्यु के समय के संस्कार एवं स्मृतियां जीवात्मा के साथ स्थानान्तरित होते हैं। वे नये जीवन में कभी-कभी साकार होते हैं। इतना ही नहीं शरीर पर जो भौतिक चिह्न होते हैं। वे भी नये शरीर में संक्रमित हो जाते हैं।
डॉ. स्टीवेन्सन ने अनुसंधान के संदर्भ में देखा है कि जिन लोगों की मृत्यु गोली लगने से हुई, छुरी के प्रहार से या अन्य किसी कारण से, उस समय शरीर पर जो चिह्न बनते हैं वे अगले शरीर में यथावत पाये जाते हैं। शरीर के चिह्नों का स्थानान्तरण भी पुनर्जन्म की सच्चाई प्रकट करता है। एक अद्भुत रहस्य का उद्घाटन होता है।
स्वामी अभेदानंद ने पुनर्जन्म के पक्ष में अपना अभिमत अभिव्यक्त करते हुए कहा-मृत्यु के समय अपनी सारी शक्तियों को समेट कर चला जाता है। उसमें सारी अनुभूतियों का अंकन होता है तथा सूक्ष्म शरीर के माध्यम से नये शरीर में संक्रमित हो जाते हैं।
सूक्ष्म शरीर की गतिविधियों का अध्ययन परामनोवैज्ञानिकों के लिये महत्त्वपूर्ण विषय है। सूक्ष्म शरीर की अवधारणा से ही पुनर्जन्म में विश्वास की नई कड़ी जुड़ती है।
सूक्ष्म शरीर क्या है ? मृत्यु के साथ उसका अविनाभावी सम्बन्ध कैसे होगा ? जैन-परम्परा के पास इन प्रश्नों का उत्तर है।
परामनोवैज्ञानिकों ने अतीन्द्रिय घटनाओं के माध्यम से मृत्यु के बाद भी जीवन का अस्तित्व है, इसका समर्थन किया है। विशिष्ट योग साधकों में
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- जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन