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निरूपण किया है, जो क्रिया३७ मोक्ष से जोड़ती है वह योग है। अध्यात्मविकास में योग का महत्त्व है। उसके पांच बिन्दु३८ हैं- अध्यात्म, भावना, ध्यान, समता, वृत्ति संक्षय। योग का जहां से प्रारंभ होता है आत्म-विकास की पहली भूमिका है। योग की पूर्णता के साथ आत्म-विकास भी पूर्ण हो जाता है। प्रतिपादन की शैली-भेद से प्रायः सभी दर्शनों ने जीव के विकास क्रम को माना है।
मिथ्यात्व निवृतिवादर सास्वादन अनिवृत्ति मिश्र दृष्टि सूक्ष्म संवरण
अविरति जैन उपशांत मोह देश विरति क्षीण मोह प्रमत्त संयोगीमु अप्रमत्त
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- जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनशीलन