Book Title: Jain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Author(s): Naginashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 236
________________ मोक्ष की परिभाषा मोक्ष शब्द 'आसने' धातु से बना है। तात्पर्य है-कर्मों का उच्छेद हो जाना। बंधनों से छूट जाना मोक्ष है। अकलंक'० और विद्यानंदी१ ने आत्मस्वरूप के लाभ होने को मोक्ष कहा है। मुक्ति शब्द व्याकरण की दृष्टि से 'मुच' धातु से निष्पन्न होता है जिसका अर्थ है-मोचन। जीव का समस्त कर्मों से मुक्त हो जाना। जब आत्मा २ कर्म रूपी देह से अपने को अलग कर देता है उस समय उसमें स्वाभाविक गुणोदय होता है उसे मोक्ष कहते हैं। मुक्ति शब्द का अभिप्रेत अर्थ वाच्यता मुक्ति शब्द का अभिप्रेत अर्थ है- संपूर्ण कर्म वियोग।१३ मुक्ति शब्द भाववाचक संज्ञा है। इसका वाच्यार्थ है- बंधन से छूटने की क्रिया या भाव। मुक्ति के पर्याय अमर कोश में-मुक्ति, कैवल्य, निर्वाण, श्रेय, निःश्रेय, अमृत, मोक्ष, अपवर्ग आदि अभिवचन हैं। एकार्थक हैं।१४ मोक्ष, निर्वाण१६, बहिर्विहार'७, सिद्ध लोक ८, अनुत्तर गति९, प्रधान गति२०, सुगति२१, वरगति२२, ऊर्ध्वदिशा२३, दुरारोह२४, अपुनरावृत्त२५, शाश्वत२६, अव्याबाध२७, लोकोत्तम२८ आदि समानार्थक शब्दों का उल्लेख आगमों में यत्र-तत्र उपलब्ध है। बौद्ध दर्शन में मोक्ष के स्थान पर निर्वाण शब्द का प्रयोग मिलता है जो लोकातीत अवस्था का घोतक है। स्वयं बुद्ध कहते हैं-इस अवस्था की अभिव्यक्ति के लिये उनके पास कोई शब्द नहीं है। उन्होंने निर्वाण को 'अच्युत स्थान' कहा है।२९ यह अचल, अजर, अमर, क्षेमपद है। अनिवर्चनीय, अवाच्य एवं अवक्तव्य है। निर्वाण का मुख्य आधार कर्म क्षय है। मिलिन्द प्रश्न में निर्वाण का वर्णन इस प्रकार है- तृष्णा के निरोध हो जाने से उपादान का निरोध हो जाता है। उपादान-निरोध से भव-निरोध, भवनिरोध से जन्म नहीं होता। पुनर्जन्म नहीं होने से वृद्धावस्था, मरना, शोक, रोना, पीटना, दुःख, बेचैनी और परेशानी सभी रुक जाते हैं। इस तरह निरोध हो जाना ही निर्वाण है। यह एक यथार्थ स्थिति है, जहां संसार का अंत हो जाता है और एक वर्णनातीत शांति प्राप्त होती है।३० मोक्ष का स्वरूप : विमर्श २१७.

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