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विकासवाद : एक आरोहण
विकासवाद एक दर्शन है। इसका पर्यायवाची शब्द है इवोल्युशन (Theory of Evolution) । विकास का युग है। सर्वत्र विकास की गूंज सुनाई दे रही है। समाज में, तकनीकी में, अनुसंधान के क्षेत्र में। रीति-रिवाजों में, पृथ्वी की सतह, सौरमंडल में । इस विकास या परिवर्तन के पीछे कौनसी शक्ति कम कर रही है ? परिवर्तन कैसे होता है ? इनके समाधान में गहरा चिंतन ही आधुनिक विकासवाद की आधारशिला है ।
परिवर्तन मानव और प्रकृति की स्वाभाविक प्रक्रिया है । विचार, वस्तु और विधान कभी एक जैसे नहीं रहते। आरोहण-अवरोहण, उत्थान-पतन का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता । परिवर्तन की गाड़ी उत्पाद और व्यय के पहियों पर गतिशील है। परमाणु में इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन अपनी धुरी पर निरंतर घूम रहे हैं।
पदार्थ मात्र परिवर्तनधर्मा है । ब्रह्माण्ड एक अनवरत प्रवाह है। जिसमें घटनाओं की अंतहीन श्रृंखला है। परिवर्तन विश्व व्यवस्था का एक अंग है । सर्वत्र संक्रमण, परिवर्तन एवं विभेदीकरण ही दिखाई देता है। परिवर्तन विश्वव्यवस्था का एक अंग है, अन्यथा व्यवस्था घटित नहीं हो सकती। समस्त परिवर्तनों, परिणमनों, क्रियाओं और घटनाओं का सहकारी कारण है - काल ।
काल के निमित्त से पदार्थ में प्रतिक्षण नव-निर्माण एवं ध्वंस होता रहता है । आधुनिक विज्ञान भी काल के सम्बन्ध में इन तथ्यों से सहमत है ।
काल विभाग परिप्रेक्ष्य में जैविक विकास
काल की अपेक्षा से जब वैश्विक पर्यावरण में सामूहिक परिवर्तन होता है तो इस कालगत परिवर्तन को जैन दर्शन में क्रम हासवाद या क्रम विकासवाद के नाम से पहचाना जाता है । प्राकृतिक सार्वभौम परिवर्तन जंबुद्वीप के अन्तर्गत भरत क्षेत्र एवं ऐरावत क्षेत्र में अनवरत गतिमान है। क्रमिक विकास को उत्सर्पण और हास को अवसर्पण कहते हैं।
उत्सर्पण और अवसर्पण दोनों का संयुक्त २० कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण वर्षों का एक कालचक्र होता है। इसके कुल १२ पर्व होते हैं। अवसर्पण के विकासवाद : एक आरोहण
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