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___ मन के लिये आगमों में दो शब्द प्रमुख हैं-नो इन्द्रिय एवं अनिन्द्रिय। इन्द्रियों के विषय नियत हैं। वे वर्तमान ग्राही हैं तथा मूर्त द्रव्य के वर्तमान पर्याय को ही जानती है किन्तु मन त्रैकालिक रूप को जानता है। भारतीय परम्परा में मन ___ वैशेषिक (वै.सू. ७/१/२३) नैयायिक (न्या.सू.३/२/६१) पूर्व मीमांसक (प्रकरण प.पृ. १५१) मन को परमाणु रूप तथा नित्य कारणरहित स्वीकार करते हैं।
सांख्य-योग तथा वेदान्त उसकी उत्पत्ति प्राकृतिक अहंकार तत्त्व से या अविद्या से मानते हैं।
भारतीय साहित्य में सबसे प्राचीन हैं वेद। वेदों में मन को शरीर के बाह्य अंगों से अलग स्थान दिया गया है।
आयुर्वेद में अन्य द्रव्यों के समान मन को भी महाभूतोत्पन्न माना है। मन को अणुरूप तथा ज्ञानेन्द्रियों एवं कर्मेन्द्रियों का प्रवर्तक कहा है।
गीता के अनुसार संपूर्ण नैतिक दर्शन मनोविज्ञान के धरातल पर अवस्थित है।
महर्षि अरविंद ने मानसिक चेतना के ऊर्ध्व रूप को अतिमानस की संज्ञा जो मानसिक आरोहण का महत्त्वपूर्ण कदम है।
योग वशिष्ठ में आत्मा की संकल्प शक्ति का नाम मन है। जैन और बौद्ध परम्परा में मन न तो अणु है, न व्यापक बल्कि मध्यम परिमाण वाला है।
मन का कार्य है- चिंतन करना। चिंतन त्रिकालवर्ती है। इन्द्रियों की गति सिर्फ पदार्थ तक है। मन की गति पदार्थ और इन्द्रिय दोनों तक है। ईहा, अवाय, स्मृति, प्रत्यभिज्ञा, तर्क, अनुमान आदि मानसिक चिंतन के विविध पहलू हैं।
भारतीय मनोविज्ञान में मन, अंतःकरण, बुद्धि, चित्त, कर्म आदि के पारस्परिक सम्बन्धों के अतिरिक्त उनकी विश्लेषणात्मक चर्चा मिलती है। ज्ञान, भावना, इच्छा और मानसिक व्यापार का साधन मन ही है। पाश्चात्य चिंतन में मन की अवधारणा
पाश्चात्य चिंतन परम्परा में मन के विषय में विशेष रूप से तार्किक और
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जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन