________________
परन्तु पहले क्रिकेट मेच खेलने की सारी प्रक्रिया इसी ग्राउंड पर होती है। इसलिये मिथ्यात्व की गणना गुणस्थान में की है।
मिथ्यादृष्टि जीवों की दृष्टि सर्वथा अयथार्थ नहीं होती। मोह की प्रगाढतम अवस्था में भी ऐसा काई जीव नहीं जिसमें कर्म विलयजन्य विशुद्धि का अंश न हो।
- प्रथम गुणस्थान मिथ्यात्व रूप होते हुए भी सम्यक् दर्शन की ओर प्रस्थित करने वाले गुणों की भूमि है इसलिये गुणस्थान कहा है। संसार की अधिकांश आत्माएं मिथ्यात्व गुणस्थान में रहती हैं। मिथ्यात्व के ५ प्रकार हैं २६– १. आभिग्राहिक-किसी एक बात को स्वीकार कर दूसरे का खण्डन
करना। २. अनाभिग्राहिक-गुण-दोष की मीमांसा किये बिना सभी मन्तव्यों को
समान समझना। ३. अभिनैवेशिक-अपने पक्ष का असत्य ज्ञापित होने पर भी असत्य का
आग्रह बनाये रखना। ४. सांशयिक- तत्त्व के स्वरूप में संदेह करना। ५. अनाभोगिक- मोह की प्रबल अवस्था में ज्ञान का अभाव।
मिथ्यात्व के अन्य पांच प्रकारों का भाव संग्रह२७ में निरूपण है-१ विपरीत, २ एकांत, ३ विनय, ४, संशय, ५ अज्ञान।
प्रथम गुणस्थानवर्ती भव्य-अभव्य आत्माओं में भव्य आत्मा भविष्य में कभी-न-कभी यथार्थ दृष्टिकोण से आध्यात्मिक विकास कर पूर्णता को प्राप्त कर सकेगी किन्तु अभव्य आत्माओं को यथार्थ बोध संभव नहीं। वे आत्माएं विपरीत, एकान्तिक धारणाओं तथा संशय और अज्ञानग्रस्त रहने से यथार्थ दृष्टिकोण के प्रति उनमें रुचि का अभाव ही रहता है। जैसे ज्वरपीड़ित को मधुर भोजन अरुचिकर होता है। ... पं. सुखलालजी के अभिमत से-प्रथम गुणस्थान में स्थित अनेक आत्माएं ऐसी हैं जो राग-द्वेष के प्रबल वेग को दबाये हुए होती हैं। यद्यपि आध्यात्मिक लक्ष्य के प्रति उनका लक्ष्य अनुकूल नहीं होता फिर भी अन्य कई अविकसित आत्माओं से उनका स्तर ठीक होता है। योग दृष्टि समुच्चय में मित्रा, तारा, आदि दृष्टि में चित्त की मृदुता, अद्वेष वृत्ति, करुणा जैसे गुणों का प्रकटीकरण होता है।
.१९६०
- जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन