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१. निगोद के जीव एक श्वासोच्छ्वास में १७ बार जन्म-मरण करते हैं।
यानी इतनी तीव्र गति से जन्म और वृद्धि होती है। नया पुराना जीव कौनसा, पता ही नहीं चलता । आधुनिक बैक्टिरिया एवं वायरस भी ऐसे ही पैदा होते हैं ।
२. निगोद के जीव समुर्च्छिम हैं। विज्ञान के अनुसार बैक्टिरिया आदि भी अलैंगिक प्रजनन करते हैं।
३. निगोद के जीव अनन्त हैं, आधुनिक सूक्ष्म जीव भी अनन्त हैं।
४. निगोद के जीवों की तरह सूक्ष्म जीवों का भी आकार है ।
५. निगोद के जीव एकेन्द्रिय हैं, सूक्ष्म जीव भी एकेन्द्रिय होने का संकेत है।
निगोद के जीवों के जन्म-मरण का काल अत्यल्प है। वैसा सूक्ष्म जीवों के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता कि एक मुहूर्त में कितने जन्म-मरण करते हैं ।
प्रश्न है, इन जीवों के विकास की प्रक्रिया क्या है? कैसे होता है ? समाधान की भाषा में, अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में प्रवेश ही विकास का प्रथम चरण है। यह काललब्धि सापेक्ष है ।
विकास की जितनी भी दिशाएं उद्घाटित होती हैं उनमें काल, नियति, स्वभाव, पुरुषार्थ एवं कर्म-पांचों का समन्वित अनुदान है। विकास में काललब्धि को प्रमुखता दें तो परिवर्तन में भी काल से नियंत्रित व्यवस्था है। पूरी सृष्टि इस वैश्विक नियम (Universal Law) से संचालित है।
जड़-चेतन की प्रत्येक अवस्था विकास है । खगोल, भूगोल, इतिहास, अर्थशास्त्र, मानसशास्त्र, समाजशास्त्र, ब्रह्माण्डीय अनुसंधान आदि समस्त ज्ञान - विज्ञान की व्याख्या से विकासवाद का दायरा विस्तार पाता गया । आज विकासवाद की अवधारणा मुख्यतः लैमार्क, डारविन, ऐरेस्मस, वफन के अध्ययन एवं अनुसंधान पर टिकी है।
चार्ल्स डारविन ने जैविक विकास की स्थापना कर पाश्चात्य चिंतन के क्षेत्र में एक हलचल खड़ी कर दी । यह सिद्धांत लोकप्रिय बना, कारण नवीनता लिए हुआ था।
विकासवाद का उद्भव प्राचीन ग्रीक दार्शनिक डेमोक्रेट्स, एरिस्टोटल आदि से माना जाता है। डेमोक्रेट्स के अभिमत से विश्व का विकास जड़ तत्त्व
जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन
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