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भय से, आशंका, अभिरुचि, बुद्धिमत्ता, उत्तेजनात्मक, आवेशग्रस्त मनःस्थिति में होती है उन्हें पिछले जन्म की स्मृति अधिक स्पष्ट होती है । किन्तु जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, भावुक संवेदनाएं समाप्त हो जाती हैं।
जैन आगमों में पुनर्जन्म की ज्ञप्ति के तीन हेतुओं का निर्देश है। ° स्वस्मृति, परव्याकरण, अन्य के पास श्रवण । अस्तित्ववादी दार्शनिकों ने पुनर्जन्म की सिद्धि के लिये अनेक युक्तियां प्रस्तुत की हैं - मोहनीय कर्म का उपशम, अध्यवसान शुद्धि, ईहापोह, मार्गणा - गवेषणा आदि ।
यहां एक ज्ञातव्य है कि जाति स्मरण में वे ही पूर्वजन्म देखे जाते हैं जो 'संज्ञी' के हों। यानी जिस जन्म में प्राणी मनयुक्त रहा हो। जैन अवधारणा में ऐसे संज्ञी के नौ पूर्ववर्ती जन्मों का स्मरण कर सकता है।
जाति - स्मृति के दो रूप हैं - एक स्वयं के सहज बोध द्वारा। दूसरा किसी विशिष्ट ज्ञान के अवधारक आप्त पुरुष द्वारा। जैसे उत्तराध्ययन में चित्त-संभूत का वर्णन है। बौद्ध ग्रन्थों में भी इससे मिलता-जुलता उल्लेख है। परामनोवैज्ञानिकों ने भी एक साथ कई जन्मों की संभाव्यता को स्वीकार ही नहीं किया अपितु अपने अन्वेषणों से इसे सत्य साबित भी किया है। नो जन्मों की स्मृति का आश्चर्यजनक वृत्तान्त उपलब्ध है।
दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग की घटना है। एडवर्व वर्वे की पत्नी केरोलिन फ्रांसिस एलिजाबेथ की पुत्री जोय वर्वे थी । जोय बालिका परामनोवैज्ञानिकों के अध्ययन का आकर्षक केन्द्र बन गई। जोय ने अपने पिछले नौ जन्मों की स्मृति का प्रमाण दिया । जोय के अनुसार उसे पूर्व के प्रथम जन्म की बात स्मृति में थी कि डायनासोर (प्राचीन भीमकाय पशु) ने पाषाणकाल में एक बार उसका पीछा किया था।
दूसरे जन्म में जोय दासी थी। उसके स्वामी ने अप्रसन्न होकर उसका सिर छेदन कर दिया। तीसरे जन्म में वह दासी के रूप में नाचती रहती थी ।
चौथे जन्म में रोम के एक स्थान पर रहती थी। रेशमी कम्बल व वस्त्र
का कार्य करती थी। पांचवें जन्म में वह धर्मान्ध महिला थी इसलिये एक धर्मोपदेशक को उसने पत्थर से मार दिया था। छठा जन्म इटली के नव जागरण काल में हुआ। उसके घर में दीवारों और छतों पर बड़े-बड़े चित्र अंकित थे। सातवां जन्म गुडहोप अन्तरीप में १७वीं शताब्दी में हुआ। वहां ठिगने तथा पीले रंग के लोगों में से थी । राज्याश्रय में चलने वाले व्यवसाय से उसका पुनर्जन्म : अवधारणा और आधार
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