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भावितः पूर्व देहेषु सततं शास्त्र बुद्धयः।
भवन्ति सत्त्व भूयिष्ठाः पूर्वजातिस्मरा नराः।। गर्भोपनिषद में इस प्रकार का उल्लेख है- गर्भ में प्राणी को जब पूर्वजन्म की स्मृति होती है, तब वह कहता है
'पूर्व योनि सहस्राणि दृष्टा चैव ततो मया। आहारा विविधा भुक्ता, पीता नाना विधास्तनाः। जातश्चैव-मृतश्चैव जन्म चैव पुनः। यन्मया परिजनस्यार्थे कृतं कर्म शुभाशुभं।
एकाकी तेन दह्येहं गतास्ते फल भोगिनः।' अर्थात् सहस्र योनियों को देखा, विविध प्रकार का आहार किया, विविध स्तनों से दूध पिया। जन्मा-मरा, परिवार के लिये शुभाशुभ कर्म किये। वे मेरे साथ नहीं हैं। साथ हैं मेरे कर्म, उनका फल मैं अकेला भोग रहा हूं।
पुनर्जन्म का सिद्धांत दार्शनिक जगत् में सहज प्रतिष्ठा पा रहा है। परामनोविज्ञान के विश्लेषण और नये-नये तथ्यों के अनुसंधान ने सटीक प्रमाण प्रस्तुत किये हैं।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने परामनोविज्ञान की ४ मान्यताओं का उल्लेख किया है-१. विचारों का सम्प्रेषण, २. प्रत्यक्ष ज्ञान, ३ पूर्वाभास, ४ अतीत का
ज्ञान।
प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक संसार के अनेक देशों तथा विभिन्न जातियों में पुनर्जन्म का व्यापक विश्वास जमा हुआ है। बर्मा, चीन, जापान, तिब्बत, पूर्वी द्वीपसमूह, लंका, भारत आदि देशों में पूर्वजन्म की मान्यता धर्म का आधार है।
हिन्दू धर्म में सर्वप्रथम हम ऋग्वेद में संकेत पाते हैं, इसके बाद उत्तरवर्ती साहित्य में प्रचुर सामग्री उपलब्ध है। जैन दर्शन की तरह बौद्ध दर्शन में भी योनियां मानी गई हैं। जिन्हें बुद्ध ने भूमियां कहा है। भूमियां चार हैं- अपायभूमि (दुर्गति-नरक, तिर्यंच, प्रेत, असुर आदि), काम सुगत भूमि (देव-मानव), रूपावचर भूमि (विशिष्ट देव जातियां), अरूपावचर भूमि।
भारत की तरह मिश्र और यूनान की प्राचीन परम्पराओं में भी आत्मा के आवागमन का सिद्धान्त मान्य रहा है। वर्तमान युग केवल मान्यता का या
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-जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन