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रेमण्ड मुण्डी ने सिद्ध किया है कि मृत्यु के पश्चात् भी जीवन की अवस्थिति रहती है। पाश्चात्य विद्वान और मृत्यु
यूरोपीय विद्वान सर वोल्टर स्काट ने अपनी डायरी में लिखा है-'जब मैं भोजन कर रहा था तो मुझे विचार हुआ कि मैं संसार में पहले भी आ चुका हूं।' इतिहासवेत्ता हेरोटोट्स कहता है- आत्मा अजन्मा है।
सन् १९८२ में इंग्लैंड में विद्वानों की एक समिति का गठन हुआ। जिसका नाम था 'ब्रिटिश सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च।' इसमें केवल ब्रिटेन ही नहीं, बल्कि यूरोप के भी प्रगतिशील देशों के विद्वानों और वैज्ञानिकों का सहयोग और संपर्क था। इस समिति ने काफी अनुसंधान के बाद दो विज्ञानों को जन्म दिया। साइकिकल रिसर्च (आध्यात्मिक अनुसंधान) और पेरासाइकोलॉजी (परामनोविज्ञान) दोनों विधाओं में मनुष्य का स्वरूप और उसकी अद्भुत शक्तियां, मृत्यु, मृत्यु के बाद जीवन, परलोक, पुनर्जन्म आदि विषयों पर गहरी अन्वेषणा की है।
आज इन विषयों पर इंग्लिश तथा अन्य पाश्चात्य भाषाओं में विशाल साहित्य प्रकाशित है। उन्होंने कहा-मनुष्य के पास अनेक मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियां हैं। जैसे-दिव्य दृष्टि, अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष (Entra-Sensory Perception) मनःप्रत्यय ज्ञान (Telepathy) दूरक्रिया (Telepinesis) प्रच्छन्न संवेदन (Cryptesthesia) पूर्वबोध (Premonition) आदि।
कुछ शंकाएं सामने आती हैं, मृत्यु के बाद क्या होगा? मृत्यु के परदे के उस पार न जाने क्या है ? कैसा है ? उस रहस्यमय अवगुण्ठन को किसने खोला है? अनिश्चतता के उस महासागर में डुबकी लगाने पर कहां ठिकाना लगेगा ? कौन जानता है ? मरणोपरांत जीव कहां जाता है ? इन विषयों का ज्ञान प्रत्यक्ष और अनुमान-दोनों ही प्रमाणों से हर व्यक्ति के लिये संभव नहीं है।
किन्तु अनादिकाल से मनुष्य की जिज्ञासा सचेष्ट रही है। इस पर शोध और अनुसंधान चालू है। परामनोविज्ञान के क्षेत्र में चेतना की विलक्षण क्षमताओं पर शोध कार्य के द्वारा आत्मा के अस्तित्व का समर्थन हो रहा है।
जीवन की प्रक्रिया भीतर से बाहर की ओर है। वृक्ष के कई रूप हैं। एक वृक्ष बीज में निहित है, जो बाहर दिखाई दे रहा है। वह बीज की अदृश्य क्षमताओं का अभिव्यक्तिकरण है। टहनियां बनती हैं। फैलती हैं। पत्ते झड़ते हैं।
पुनर्जन्म : अवधारणा और आधार
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