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तार्किकों की तरह वैज्ञानिकों ने भी जन्मान्तर को लम्बे समय तक मान्य नहीं किया। कारण विज्ञान की पहुंच भौतिक जगत् तक ही है। उनके प्रयोग और प्रशिक्षण का केन्द्रबिन्दु पदार्थ या पुद्गल ही रहा है। जब से विज्ञान ने सूक्ष्म जगत् के रहस्यों की खोज में चरण बढ़ाये, एक नई क्रांति घटित हुई।
आत्मा को भले स्वीकार किया या नहीं, पर भौतिक जगत् से परे कुछ अभौतिक तत्त्व भी है। यह विश्वास निश्चित रूप से वैज्ञानिक क्षेत्र में पनपा है। परामनोवैज्ञानिकों ने इस दिशा में जो प्रयत्न किया है उससे धर्म का क्षेत्र उपकृत अवश्य हुआ है।
विज्ञान की एक शाखा के रूप में विकसित हो रहा है-परामनोविज्ञान। जो मानव मस्तिष्क की उलझी हुई गुत्थियों को विश्लेषित करने के लिये प्रयासरत है। परामानसिक शक्ति इन्द्रिय संवेदनों से अनन्त गुणाधिक सामर्थ्यशाली है। किन्तु मन को नियंत्रित करके ही इस शक्ति को हस्तगत किया जा सकता है।
भारतीय अध्यात्म जगत के मूर्धन्य पुरुष तथा योगियों ने अनेक सिद्धियां प्राप्त की जिनका वर्णन पुराणों-आगमों में पर्याप्त संख्या में उपलब्ध है।
रूसी वैज्ञानिक प्रोफेसर 'लियोनिद वासिलयेव' ने हिप्नोटिज्म तथा टेलीपैथी के संयुक्त उपयोग से यह सिद्ध किया कि हिप्नोटिज्म की अवस्था में अतीन्द्रिय शक्तियां अधिक स्पष्टता से उभरती हैं। उन्होंने अपने शोध निष्कर्षों में यह निरूपण किया है
मनुष्य मस्तिष्क प्रसारण केन्द्र की तरह काम करते हैं। पुनर्जन्मवाद, प्रेतवाद, तंत्र विद्या, अतीन्द्रिय बोध, दूरप्रभावी गतिशीलता तथा और भी कई विषय आज परामनोविज्ञान के अभिन्न आयाम बन गये हैं।
परामनोविज्ञान के क्षेत्र में चेतना की विलक्षण क्षमताओं पर शोध कार्य के द्वारा आत्म-सत्ता के स्वतंत्र अस्तित्व का समर्थन हो रहा है। कहा भी है-'The soul that rises with us, our life's star, hath had elsewhere its setting and cones from affer.' अर्थात् हमारे साथ हमारे जीवन के नक्षत्र के साथ उदीयमान आत्मा का उद्भव अन्यत्र है और वह सुदूर से आई है। परामनोविज्ञान के सामने ज्वलंत प्रश्न है कि यदि भूतकाल में जीवन का अस्तित्व था तो वर्तमान में उसकी स्मृति क्यों नहीं ?
पुनर्जन्म : अवधारणा और आधार -