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मनुष्य जब शरीर त्याग करता है तब उसके कर्मों के अनुसार ही नया जन्म मिलता है। आत्मा वर्तमान में है। इससे स्पष्ट है कि अतीत में था, भविष्य में रहेगा। आचारांग में कहा है-"जस्स नत्थि पुरा-पच्छा मज्झे तत्थ कओ सिआ।"
जिसका पूर्व और पश्चात् नहीं उसका मध्य कहां से होगा ? आत्मा की त्रैकालिक सत्ता पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म की अभिव्यक्ति है।
आचारांग के आधार पर आत्मा की नित्यता सिद्ध है। द्रव्य रूप से आत्मा नित्य है। पर्याय रूप में शैशव, तरुण और वृद्ध पर्यायें बदलती हैं। एक शरीर से दूसरे शरीर में संक्रमण करती हैं।
आत्मा की नित्यता से पुनर्जन्म, पुनर्जन्म से आत्मा की नित्यता का प्रश्न जुड़ा है। पुनर्जन्म का मूल यही है, जो जैसा कर्म करता है तदनुरूप योनि में जन्म प्राप्त करता है।
न केवल भारतीय विचारक अपितु पाश्चात्य दार्शनिक प्लेटो भी कहता - The soul alwage weaves her garment a new. The soul has a natural strength which will hold out and be born many times. 3791 341CHT सदा अपने लिये नये-नये वस्त्र बुनती है तथा आत्मा में एक ऐसी नैसर्गिक शक्ति है जो ध्रुव रहेगी और अनेक बार जन्म लेगी।३७
आधुनिक युग के दार्शनिक स्पिनोजा आदि दार्शनिकों का आत्मा की शाश्वतता में विश्वास था। काण्ट का अभिप्राय था-प्रत्येक आत्मा मूलतः शाश्वत है।
ग्रीक दार्शनिक पाइथेगोरस के विचारों में मृत्यु के बाद आत्मा के अस्तित्व एवं अमरत्व की कल्पना स्पष्ट झलकती है।
एम्पिडॉक्स३८ का अभिमत था, यदि पूर्वजन्म है तो पुनर्जन्म भी है। दोनों साथ-साथ चलते हैं।
शेलिंग का पुनर्जन्म में विश्वास था। लाइबनीत्ज ने प्रत्येक जीवित वस्तु को अविनाशी माना है। हेगल के अनुसार सभी आत्माएं पूर्णता की ओर बढ़ रही हैं। इसी तरह अरस्तु, सुकरात, जेम्ससेथ मार्टिन्यु आदि ने आत्मा और मरणोत्तर जीवन को अपने-अपने तरीके से स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
ड्राइवन ने लिखा है- Death has no power the immortal soul to slay, that when its present body turns to slay, seeks a fresh home,
पुनर्जन्म : अवधारणा और आधार