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बजाने के विशेष यंत्रों की सहायता से ग्रामोफोन रिकार्ड भर लिया जाता है। वह ध्वनि रेखा के रूप में होती है। रेखाओं के रूप में ही ध्वनियां सुरक्षित रहती हैं। जब भी चाहें, विशेष विधि से सुई के आघात से उस ध्वनि को साकार रूप दे दिया जाता है।
इसी प्रकार हर शारीरिक-मानसिक कार्य का सूक्ष्म चित्रण अन्तर्मन के परमाणुओं पर होता है, फिर प्रकट होना क्रिया की प्रतिक्रिया का स्थूल रूप है। कर्मों की विपाक प्रक्रिया
ऊपर हमने कर्मों की दस अवस्थाओं की चर्चा की। उनमें देखा, कुछ कर्म ऐसे होते हैं जिनका विपाक नियत है। उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन संभव नहीं। उन्हें निकाचित कर्म कहा जाता है।
कुछ कर्म ऐसे हैं जिनका विपाक नियत नहीं है। उनके विपाक में स्वरूप, समय, मात्रा को परिवर्तित किया जा सकता है। जैन दर्शन में नियत-अनियत दोनों विपाक मान्य हैं।
प्रश्न होता है-कर्मों का विपाक कैसे होता है ? शुभाशुभ फल देने में कर्म स्वयं शक्तिमान है या अन्य किसी शक्ति का हाथ है? प्रश्नों का उत्तर अत्यन्त जटिल एवं उलझन भरा है। हर व्यक्ति के समझ से परे है फिर भी यथार्थ पर अयथार्थ का परदा नहीं डाला जा सकता।
विपाक शब्द वि+पाक का जोड़ है। 'वि' के विशिष्ट और विविध-दोनों अर्थ विहित हैं! पाक का अर्थ है-पकना या पचना। विशिष्ट रूप से कर्मों के पकने को विपाक कहते हैं।३३
आगम की भाषा में विपाक३४ को अनुभव कहा है। कषायादि के कारण सुख-दुःखादि फल देने की शक्ति या उदय-उदीरणा के द्वारा कर्म-फल की प्राप्ति विपाक है।
कर्मों के३५ फलदान की शक्ति कषायों पर निर्भर है। कर्मों के आदान में कषायों की तीव्रता रही तो कुछ समय बाद ही तीव्र फल देना प्रारंभ कर देते हैं। यदि आस्रवण में मंदता रही तो विपाक देरी से भी हो सकता है।
कर्मों का फल प्रदान करना बाह्य सामग्री पर निर्भर है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार फल देते हैं।३६ कर्मवाद; उसका स्वरूप और वैज्ञानिकता
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