________________
१. जीवन स्तर से पुनर्जन्म की सिद्धि
वर्तमान जीवनशैली पुनर्जन्म की प्रतीक है क्योंकि विभिन्न जीवों का न तो शरीर, रूप, आयु समान है न भोगादि सुख-साधन भी एक जैसे। प्राणीप्राणी में व्याप्त वैषम्य किसी अदृश्य शक्ति की ओर संकेत है।३० वह शक्ति पूर्व कृत कर्म ही है। २. जन्मजात विलक्षण प्रतिभा
व्यवहार में एक व्यक्ति असाधारण प्रतिभा संपन्न है, दूसरा अबोध । एक मां की संतानों में भी यह अंतर पाया जाता है जो पूर्वजन्म के अभ्यास का परिणाम है।
प्लेटो ने सुकरात से पूछा- आप समान रूप से अध्यापन करवाते हैं किन्तु विद्यार्थियों में अंतर क्यों? एक की स्मृति तेज है, एक की मंद। सुकरात ने उत्तर दिया- जिन लोगों के पूर्वजन्म का अभ्यास है वे शीघ्र याद कर लेते हैं। जिन्हें अभ्यास नहीं उन्हें देर लगती है। यह संवाद पुनर्जन्म का प्रमाण है। ३. आत्मा का नित्यत्व
__ मृत्यु के बाद शरीर नष्ट हो जाता है किन्तु आत्मा का अस्तित्व विद्यमान रहता है।३१ "आत्मनित्यत्वे प्रेत्यभाव सिद्धिः।३२ आचार्य वात्स्यायन ने इस सूत्र की व्याख्या की- नित्योऽयमात्मा प्रेति पूर्व शरीरं जहाति। प्रियते इति प्रेत्य च पूर्व शरीरं हित्वा भवति जायते शरीरान्तरनुपादत्त इति तच्चैतदुभयं जन्म-मरण प्रेत्यभावो वेदितव्या।" यह कथन पुनर्जन्म की सिद्धि सूचक है। ४. प्रत्यभिज्ञान
प्रत्यक्ष और स्मृति का जोड़ रूप ज्ञान प्रत्यभिज्ञा है।३३ स्मृति सबकी समान नहीं होती। ५. ज्ञान दृष्टि से
ज्ञान के विकास में भी न्यूनाधिक देखा जाता है। ज्ञान शक्ति सबमें निहित है किन्तु विकास का अंतर है। ६ वीर्य शक्ति से
भीतर में आत्मवीर्य का खजाना सबको प्राप्त है। फिर भी कई जीवात्माएं उत्साह एवं क्रियात्मक शक्तिसंपन्न हैं। कइयों में मन्दता है। पुनर्जन्म : अवधारणा और आधार -