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अस्तित्व का सम्बन्ध मनोदशाओं से है। मानवीय व्यवहार की व्याख्या आवेगों के आधार पर की जाती है। आवेगात्मक तीव्रता-मन्दता मनोवृत्तियों को प्रशस्त-अप्रशस्त बनाती है। संवेगों की स्थिति में हाईपोथेमेलस, स्वतः संचालित नाड़ी तंत्र और वृहद् मस्तिष्क विशेष प्रभावित होते हैं। अतः व्यक्तित्व के निर्माण में कर्म के अतिरिक्त और भी अनेकों निमित्त होते हैं।
क्लोनिंग की घटना आनुवंशिक क्षेत्र में अपूर्व घटना है। कर्मवाद की गहराई देखने पर क्लोन प्रक्रिया में संदेह नहीं रह जाता। कर्म के साथ बाह्य परिवेश भी काम करता है। कर्म सिद्धांत और क्वान्टम् यांत्रिकी
क्वान्टम् यांत्रिकी में कार्य-कारण सिद्धांत को नये ढंग से व्याख्यायित किया है। उसके अनुसार सभी अपेक्षित कारणों के उपलब्ध होने पर भी अभीष्ट कार्य होने की शत-प्रतिशत निश्चिंतता नहीं है और समान कार्यों की विद्यमानता में भी कार्य (फल) असमान हो सकते हैं। यह अनिश्चितता का सिद्धांत 'क्वान्टम् यांत्रिकी' ने सम्मान के साथ स्वीकार किया है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी सूक्ष्म कण की स्थिति एवं गति का मापन सही रूप से एक साथ न समझा जा सकता है, न बताया जा सकता है।
जैन दर्शन में भी कार्य-कारण की व्यवस्था नियति का समर्थन नहीं करती। क्योंकि एक कारण से अनेक कार्य भी होते देखे गये हैं। आइंस्टीन जैसे विख्यात वैज्ञानिक भी क्वान्टम् यांत्रिकी से इतने चौंक उठे कि वे अंतिम सांस तक इसके प्रशंसक रहे और साथ में शंका भी चलती रही। उन्होंने कहा- इसमें कहीं-न-कहीं चूक है इसलिये कार्य-कारण सिद्धांत पूर्णतया लागू नहीं हो पा रहा है।
क्वान्टम् यांत्रिकी और नियत कार्य-कारण सिद्धांत की रक्षा के लिये यह खोजते रहे कि सूक्ष्म कणों के व्यवहार को समझने में कहां भूल है ?
इस प्रश्न का उत्तर जैन कर्मवाद देने में समर्थ है। जैन दर्शन में कर्म को अत्यन्त सूक्ष्म पुद्गल माना है। प्रत्येक जीव के साथ अनादि काल से संपृक्त है। उनसे प्रभावित जीव नये कर्मों का उपार्जन करता रहता है। ग्रहण-विसर्जन की प्रक्रिया निरंतर चालू है। कर्म-रजों को उपकरण से पकड़ पायें या नहीं, किन्तु कर्मधूलि प्रयोक्ता की भावनानुसार उसे अवश्य प्रभावित करती है।
आजकल यह मान्य हो चुका है, प्रयोक्ता की भावना का प्रभाव यंत्रों पर भी पड़ता है। इसके आधार पर 'क्वान्टम् यांत्रिकी' एवं कार्य-कारण सिद्धांत .१३२
- जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन