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जैन परम्परा
बौद्ध परम्परा मोह कर्म की सत्ता-अवस्था
। १. अविद्या
1 २. संस्कार मोह कर्म का विपाक और
३. तृष्णा
२४. उपादान नये बंध की अवस्था
५. भव ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय
६. विज्ञान आयुष्य, नाम, गोत्र और १७. नाम-रूप वेदनीय की विपाक अवस्था
८. षडायतन । ९. स्पर्श
१०. वेदना भावी जीवन के लिये आयुष्य, नाम, गोत्र आदि कर्मों के
J११. जाति बंध की अवस्था
। १२. जरा-मरण
मनोविज्ञान-कर्मआधुनिक मनोविज्ञान चेतना के तीन पक्ष मानता है- ज्ञानात्मक (Cognitive), भावात्मक (Affective) और संकल्पात्मक (Conative)। इस आधार पर चेतना के तीन कार्य हैं- १. जानना, २. अनुभूति, ३. इच्छा करना। इस विषय पर प्राचीन समय से भारतीय मनीषियों ने काफी चिंतन किया है। आचार्य कुंदकुंद ने चेतना के तीन पक्षों का उल्लेख किया है। ज्ञान-चेतना, कर्म-चेतना, कर्मफल-चेतना।२६
तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो मनोविज्ञान ने ज्ञान-चेतना को ज्ञानात्मक पक्ष, कर्मफल-चेतना को भावात्मक पक्ष और कर्म-चेतना को संकल्पात्मक पक्ष से अभिहित किया है।
बौद्ध दर्शन में भी इसी प्रकार चेतना के तीन स्तरों का निरूपण है जो जैन दर्शन एवं मनोविज्ञान से काफी साम्य रखता है। जैन दर्शन
बौद्ध
मनोविज्ञान ज्ञान-चेतना सन्ना या क्रिया-चेतना ज्ञानात्मक पक्ष कर्मफल-चेतना विपाक-चेतना या वेदना भावात्मक पक्ष कर्म-चेतना चेतना (संकल्प)
संकल्पात्मक पक्ष
.१००
- जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन