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अनुमान :- साधन के आधार पर साध्य का ज्ञान अनुमान है। पर्वत शिखर पर उठती हुई धूम - रेखा देखकर अग्नि का ज्ञान करना - 'पर्वतोऽयं वह्निमान् धूमात्।' क्योंकि धूम और आग में व्याप्ति सम्बन्ध है | धूम साधन है। अग्नि साध्य है। दोनों में अविनाभावित्व है ।
सहभावी और क्रमभावी कार्यों के बीच यह सम्बन्ध रहता है। रूप से रस का या रस से रूप का बोध सहभावी है। कारण के बाद कार्य का होना क्रमभावी है । अग्नि से धूम का पैदा होना—यह क्रमभावी है । बादलों को देखकर वर्षा का अनुमान, नदी की वेगवती धारा से विगत में वृष्टि का अनुमान । इन दोनों में व्याप्ति है। इसमें कार्य-कारण और कारण कार्य सम्बन्ध वर्तमान है । व्याप्ति को पाश्चात्य तर्कशास्त्र में- 'Scientific Induction' कहा जाता है।
उपमानः नः- पूर्व अनुभूत किसी वस्तु के साथ समानता देखकर नई वस्तु का बोध करना उपमान प्रमाण है। इसमें नाम एवं नामी, संज्ञा और संज्ञी का अवबोध है। जैसे- किसी नीलगाय के बारे में अवगति प्राप्त की । उसके रूपरंग, आकार के सम्बन्ध में सुना। वैसा ही पशु कभी जंगल में सामने आया । स्मृति ताजा हो उठी। यह नीलगाय है क्योंकि गाय के साथ इसका सादृश्य है। नीलगाय ही है - इस निश्चय पर पहुंचना उपमान प्रमाण है।
आगमः - 'आप्तोपदेश : आगमः ' - आप्त वह कहलाता है जो वस्तु को यथार्थ रूप से जानता है। हितोपदेष्टा होने से उसके वचन प्रमाण हैं। आत्मा के संदर्भ में आगम- प्रमाण भी इतना महत्त्व नहीं रखता । आगम स्वयं कहते हैं
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुश्रुतेन ।
फलित है, आत्मा चारों प्रमाणों से ज्ञेय नहीं है । अप्रमेय है।
अनात्मवादियों का तर्क है-आत्मा नहीं है, क्योंकि उसका कोई साधक प्रमाण नहीं मिलता, न कोई उत्पादक तत्त्व है। आचार्य अकलंक ने इस तर्क को न्यायसंगत नहीं कहा, क्योंकि उनका हेतु असिद्ध, विरुद्ध और अनेकांतिक दोष से दूषित है । ३७
आत्मवादी कहते हैं- आत्मा है, कारण उसका कोई बाधक प्रमाण नहीं है। प्रत्येक पदार्थ की अस्तित्व सिद्धि में साधक-बाधक प्रमाणों का भी अपना महत्त्व है। साधक प्रमाण जैसे अस्तित्व के सूचक हैं तो बाधक प्रमाण न मिलने पर भी अस्तित्व की सिद्धि स्पष्ट है।
आत्मा की दार्शनिक पृष्ठभूमि : अस्तित्व का मूल्यांकन -
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