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तैजस शरीर—तेजपुंज पुद्गलों से निर्मित तैजस शरीर है। प्राणी मात्र के शरीर में विद्यमान उष्णता से इसकी सिद्धि होती है। यह पाचन, सक्रियता एवं तेजस्विता का मूल है। इससे प्राण शक्ति उत्पन्न होती है जो स्थूल शरीर, श्वास, इन्द्रिय, वचन और मन को संचालित करती है। आभामंडल भी इसी से निर्मित होता है, तैजस शरीर सूक्ष्म शरीर है। इसके इलेक्ट्रॉन स्थूल शरीर के इलेक्ट्रॉनों से अधिक तीव्र गति से चलायमान होते हैं।
हमारे अर्जित कर्म संस्कारों के अनुसार तैजस शरीर स्पंदित होता है। प्राणधारा विकिरण करता है। स्वाभाविक तैजस शरीर सब में होता है किन्तु तपोलब्ध तैजस शरीर सब मे नहीं होता। यह तपस्या द्वारा प्राप्य है। तपोजनित तैजस शरीर में अनुग्रह और निग्रह की शक्ति रहती है।
वैज्ञानिक दृष्टि से यह एक शक्तिशाली बिजलीघर (पॉवर हाऊस) है। इसे एस्ट्रल बॉडी (सूक्ष्म शरीर) कहा जाता है। गामा, बीटा, अल्ट्रा, वायलेट, इन्फ्रारेड आदि विद्युत तरंगों का सुन्दर समन्वय है तैजस शरीर।
प्रत्येक व्यक्ति अपने श्वास से वायुमंडल स्थित विद्युत कणों को ग्रहण करता है। वे समस्त ऊतकों एवं कोषों को संपोषित कर पुनः त्वचा से निष्कासित हो वायुमंडल में व्याप्त हो जाते हैं। हृदय की धड़कन, मांसपेशियों का आंकुचन-प्रसारण, रसायन-हार्मोन्स का उत्पादन आदि इस विद्युत शरीर के क्रिया-कलाप हैं।
आधुनिक अनुसंधानों ने तैजस शरीर के अस्तित्व को अधिक पुष्टि दी है। यह शक्ति विकिरण का केन्द्र तथा पूरे स्थूल शरीर में व्याप्त रहता है। तैजस शरीर, जीव और स्थूल शरीर के बीच सेतु तथा संपर्क अधिकारी का कार्य करता है।
कार्मण शरीर-कर्म समूह से निष्पन्न कार्मण शरीर है। तैजस शरीर सूक्ष्म है। कार्मण अति सूक्ष्म शरीर है। तैजस और कार्मण-दोनों अभिन्न सहचारी हैं। दोनों के बीच इतनी अभिन्नता है कि एक-दूसरे से अलग नहीं रहते। कार्मण शरीर को कर्म शरीर या कारण शरीर (Causal body) भी कहते हैं। यह आठ कर्मों के पुद्गल समूहों का समवाय है, कर्मों का प्ररोहक ६, उत्पादक एवं सुख-दुःख का बीज है।
कर्म शरीर संस्कारों का वाहक है। जन्म-जन्मान्तर की संस्कार परम्परा इसके साथ जुड़ी हुई है। व्यक्ति का चरित्र, व्यवहार, ज्ञान, व्यक्तित्व, कर्तृत्व पाश्चात्य एवं जैन दर्शन का प्रस्थान : समन्वय की भूमिका
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