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प्लेटो के मत से आत्मा जीवन शक्ति है । शरीर निष्क्रिय है। किन्तु शरीर की गति एवं निष्क्रियता का कारण आत्मा ही है। आत्मा गति में निमित्त है, साथ ही विवेक का आश्रय भी है। विवेक के आधार पर विज्ञान के साथ उसका सम्बन्ध है और गति का कारण होने से इन्द्रिय जगत से संपर्क है। अतः विज्ञान एवं वस्तु जगत- - दोनों का आधारभूत आत्मा है। प्लेटो ने आत्मा को विश्वात्मा (World soul) कहा है किन्तु विश्वात्मा की तरह वह पूर्ण तथा असीम नहीं है।
आत्मा जीवधारियों के जीवन का वह अंश है जो मृत्यु के बाद भी अस्तित्व में रहता है ।
जीवात्मा के उसने दो रूप - बौद्धिक एवं अबौद्धिक प्रतिपादित किये हैं। मनुष्य में जो विवेक की स्फुरणा है उसका कारण बौद्धिक आत्मा ( Rational Soul) है।
संवेदना, वासना और क्रिया अबौद्धिक आत्मा (Irrational Soul) के कार्य हैं। प्लेटो ने अपने ग्रन्थ फिडो में तीन प्रकार की आत्माओं का उल्लेख किया है - बौद्धिक, कुलीन अकुलीन । कुलीन आत्मा बौद्धिक आत्मा और अकुलीन आत्मा अबौद्धिक आत्मा में समाहित हो जाती है । प्रवृत्ति के आधार पर ये भेद किये गये हैं ।
बौद्धिक आत्मा दिव्य ज्ञान की ओर अभिमुख है। अबौद्धिक की गति भौतिक जगत की ओर है। प्लेटो ने आत्मा की अमरता को सिद्ध करने के लिये कुछ प्रमाण प्रस्तुत किये हैं। जैसे जीवन एक प्रवाह है, उसका आदि बिन्दु है जन्म | अंतिम बिन्दु है मृत्यु | यह चक्र (Cycle ) अनादिकालीन है। जन्म न हो तो मृत्यु किस की ? यह आत्मा की अमरता प्रमाणित करता है।
प्लेटो ने कहा- संसार के सभी पदार्थ सावयव हैं इसलिये इन्द्रियगम्य हैं। आत्मा निरवयव होने से प्रत्यक्ष नहीं है, केवल अनुभूति का विषय है। वह आत्मा की पूर्व सत्ता (Pre-existance) तथा अमरता को स्वीकार करता है।
प्रश्न होता है - स्मृति में स्मर्तव्य विषय कारण बनता है । स्मरणकर्ता आत्मा कारण नहीं। प्लेटो के मत से स्मृति के विषय अनन्त हैं। कौनसा पदार्थ कब स्मृति का विषय बन जाये, निर्णय करना कठिन है। अतः स्मरणकर्ता आत्मा मान लेना ही न्यायसंगत है।
केवल देखना ही स्मृति का कारण नहीं, अनुभूति भी उसकी होती है। आत्मा के बिना अनुभूति नहीं । यह भी एक बिन्दु है अमरता साबित करने का । जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन
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