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नय-निक्षेपानुवर्णन अने सिद्धि दर्शाववामां आवेल छे. श्लोक १८०० छे. मलधारी हेमचंद्रसूरिकृत वृत्ति ६००० अने श्रीहरिभद्रसूरिकृत लघुवृत्ति ३५०० श्लोकनी छे. श्रीजिनदासगणि महत्तरनी चूर्णि ३००० श्लोकनी छे.
१३. देविंदत्यओ (देवेंद्रस्तव) - देवोना स्वामी इंद्रे जे स्तवना-स्तुति करी ते. तेमां इंद्रोना स्वरूप- कथन छे. गाथा २००.
१४. तंदलवेयालिय-जीव गर्भमां आवे त्यारे केवडो होय अने क्रमे क्रमे केटलो वृद्धि पामे तेने लगतुं तेमज जन्मथी मांडीने मरण सुधी-वृत्तांत छे. गाथा ४००.
१५. चंद्रावेध्यक - चंद्रमानी गतिनुं प्रमाण. जेम राधावेधमां चतुराईथी पुतळीनी आंख बींधवामां आवे छे तेम चंद्रनी गति अनुसारे अणसण साधवानी क्रिया- वर्णन.
१६.सूर्यप्रज्ञप्ति-सूर्यनी गति तथा मांडलादिकनुं वर्णन. मूळ श्लोक २२००,मलयगिरिकृत टीका ९००० श्लोकप्रमाण अने चूर्णि १००० श्लोकनी छे.
१७. पोरिसीमंडल - शंकु तेमज पुरुषना शरीरना प्रमाण जेटली छाया थाय त्यारे पोरिसी थाय अर्थात् जे जे वस्तुओ छे ते ते वस्तुओना पोताना शरीरप्रमाण छाया थाय त्यारे पोरिसी कहेवाय. आ प्रमाण उत्तरायणना अंतमां अने दक्षिणायननी आदिमां समजवू. आ पोरिसीप्रमाण एक दिवस होय छे, पछी तो आठ आंगळना एकसठ भाग करीए अने तेना एक भाग जेटलो दक्षिणायने पोतानी छाया ऊपर वधे अने उत्तरायणमां तेटलो घटे तेम समजवू. आवी रीते मांडले-मांडले पोरिसीनुं प्रमाण जे ग्रंथमा आप्युं छे ते पोरिसीमंडल.
१८. मंडलप्रवेश- दक्षिण तथा उत्तर दिशाना मंडलोने विषे चालता सूर्य तथा चंद्रनो एक एक मंडल मूकीने बीजा मंडलमा प्रवेश करवो तेने लगतुं वर्णन ते मंडलप्रवेश.
१९. विज्जाचरणविनिश्चय - विद्या एटले ज्ञान, समकित युक्त ते चारित्र. तेनुं जे फळ - विनिश्चय तेने लगतुं वर्णन अर्थात् विद्याचारणादिकनो वृत्तांत.
२०. गणिविद्या - बाल, वृद्ध साधुओनो समुदाय ते गण कहेवाय, ते गणनो नायक-अधिष्ठाता ते गणि अथवा आचार्य कहेवाय. तेनी विद्या ते गणिविद्या. आ विद्याद्वारा ज्योतिश्चक्रादीनुं ज्ञान थाय, जेथी अमुक शुभ वार, नक्षत्र, तिथि, मुहुर्त जोईने दीक्षा आदि धार्मिक क्रिया करावी शकाय.
२१. ध्यानविभक्ति- आर्त्त, रौद्र, धर्म अने शुक्लध्यान-आ चार ध्यानने लगतुं तेमा वर्णन
२२. मरणविभक्ति-मरण एटले प्राणत्याग करवो, ते बे प्रकारे थई शके- एक सारी रीते, बीजो दुष्ट अध्यवसायथी. आने लगतुं वर्णन करवामां आव्युं छे.
२३. आयविसोही (आत्मविशुद्धि) -आत्माने कोई पण धार्मिक क्रिया करतां अगर तो बीजी रीते भंग पड्यो होय तेने माटे आलोयण-प्रायश्चित विगेरे लई आत्माने शुद्ध करवो तेने लगतो अधिकार आ ग्रंथमां छे.
श्रीगच्छाचार-पयन्ना-१९