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फरमावे छे के दीक्षा के रोगनुं कष्ट आवी पडे तो पण आगम विधि जाणनार जस्त्री - स्पर्श करी शके. आगमन ज्ञाता होय, प्रौढ होय, पदवीधर होय तेवा प्राज्ञ पुरुषने माटे पण आगम विधि मुजब स्पर्शनुं फरमान छे तो जेओ अज्ञानी छे तेओने माटे कहेवुं ज शुं ? श्रीबृहत्कल्पना छट्ठा उद्देशामां आगमविधि शुं छे? तेनुं वर्णन आपेल छे के— “निग्गंथस्स य अहे पादंसि खाणू वा कंटगे वा हीरे वा सक्करे वा परियावज्जेज्जा, तं च निग्गंथे नो संचाएज्जा नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा, तं निग्गंथी नीहरमाणी वा विसोहित्तए वा, तं निग्गंथी नीहरमाणी वा विसोमाणी वा नाइक्कमइ ||१ || निग्गंथस्स य अच्छिसि पाणे वा बीए वा रए वा परियावज्जेज्जा, तं च निग्गंथे नो संचाज्जा नीहरित्तए वा विसोहेमाणी वा नाइक्कमइ ॥ २ ॥ निग्गंथीए अहे पादंसि खणू वा कंट वा हीरए वा सक्करे वा परियावज्जेज्जा, तं च निग्गंथी नो संचाइज्जा नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा, तं निग्गंथे नीहरमाणे वा विसोहेमाणे वा नाइक्कमइ ॥ ३ ॥ निग्गंथीए अच्छिसि पाणे वा बीए वा रए वा जाव निग्गंथे नीहरमाणे वा नाइक्कमइ ॥ ४ ॥” (१) कोई निर्गंथने पगमां काष्ठनी सळी, कांटो, झीणो कांकरो के रेती पेसी गई होय अने ते कांटा प्रमुखने काढवा पोते समर्थ न होय त्यारे साध्वी पासे विशुद्धि करावे तो ते बने भगवंतनी आज्ञानुं उल्लंघन करतां नथी, एटले आ कारण-प्रसंगथी साधु-साध्वीनो स्पर्श थाय तो पण ते बने आज्ञा- धारक ज छे. (२) बीजा सूत्रमां दर्शाव्युं छे के-कोई साधुनी आंखमां मच्छर प्रमुख सूक्ष्म जीव, सूक्ष्म बीज, सचित्त अचित्त पृथ्वीन रज (धूळ) पडी होय अने ते जीवादिकने काढवा समर्थ थाय तो साध्वी सहाय करी शके. आम करवामां श्रीतीर्थंकर भगवंतनी आज्ञा उल्लंघाती नथी. (३-४) जेवी रीते साधु संबंधी कह्यं तेवी ज रीते साध्वीना पगमां कंटक प्रमुख पेसी गया होय अने आंखमां सूक्ष्म जीवादिक प्रवेशी गया होय तो साधु तेम सहाय करी शके, ए वात त्रीजा-चोथा सूत्रमां दर्शावी छे- आ चार अपवादो उत्कृष्ट कारण आवी पडे त्यारे ज सेववाना छे; कारण के निर्युक्तिकार कहे छे के– “पाए अच्छि वि लग्गे, समणाणं संजएहिं कायव्वं । समणीणं समणीहिं, वोच्चुत्थे होंति चउगुरुगा ॥१॥”
“जे साधुने पगमां कंकरादिक लाग्या होय अथवा आंखमां सूक्ष्म जीवादिक प्रवेश्यां होय तो
साधु तेी विशुद्धि करे अने जो न करे तो चारमासी गुरु प्रायश्चित लागे. एवी ज रीते साध्वीना पगमां कंटकादिक पेसी गया होय त्यारे बीजी साध्वी तेनी विशुद्धि करे अने जो न करे तो तेने पण चारमासी गुरु प्रायश्चित लागे. आ ऊपरथी समजी शकाय छे के - उत्कृष्ट कारण आवी पड्या सिवाय ऊपर दर्शावेलां चार अपवादनो आश्रय न लेवो. जो ते प्रमाणे न वर्ते तो कई रीते दोषापत्ति थाय छे ते नीचेना श्लोकोथी जणाशे. “अण्णत्तो च्चिअ कुंटसि, अन्नत्तो कंटओ खतं जातं । दिट्ठ पिहतदिद्धिं किं पुण अदिट्ठइअरस्स ||२ || कंटककणुए उद्धर, धणितं अवलंब मे मति भूमी । सूलं च वत्थसीसे, पेल्लेहि घणं थणो फुरति ॥ ३ ॥ " साध्वी पासेथी कांटो कढावतो साधु धूर्तताथी तेमज स्वभावथी पोताना वस्त्रादिक बराबर ढांक्या विना बेसे एटले साध्वी तेने जेम होय तेम देखवाथी चलित चित्तवाळी बने अने खोतरवानुं स्थान मूकी अन्य स्थळे खोतरे त्यारे साधु 'अहीं खोतर, अहीं खोतर' एम अन्य अन्य स्थान दर्शावतां बनेनो परस्पर वधतो वार्तालाप
श्रीगच्छाचार- पयन्ना- २३०