Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani
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गाथार्थ-जे साध्वी गृहस्थ विगेरेनुं सीववं, तुणतुं के भरवू विगेरे क्रिया करे अथवा पोताने के बीजाने तेल आदिथी उद्वर्तन करे तेने साध्वी न जाणवी.
विवेचन-साध्वीए गृहस्थना के अन्यतीर्थीना वस्त्र, कांबल, रेशमी वस्त्रादिक सीवी आपवा नहीं, तेमां भरतादिक चित्रामण पण करवू नहीं. शरीरे तेल चोळावे, दूधनी तरवडे पीठी चोळावे, साबुलगाडी स्नान करे, आंखे काजळ आंजे तेमज गृहस्थादिकना छोकराने आभूषणो पहेरावे, तेना हाथ पग, मुख विगेरे धोवे, तेना गाले के कपाळे तिलक करे, तेना अंगे पीठी चोळे, इत्यादि कार्यो जे साध्वी करती होय तेने साध्वी न जाणवी पण वेषविडंबिका तेमज पासत्थी जाणवी. तेनुं मुख पण जोवू सारुं नहीं आ संबंधमां निरियावलि उपांग सूत्रमा सुभद्रानुं अने श्रीज्ञाताधर्मकथा सूत्रमा कालीनुं उदाहरण आप्युं छे. सुभद्रानी कथा -
राजगृही नगरीमां श्रेणिक राज्य करतो हतो. तेने चेलणा नामनी अति सुकुमार राणी हती. नगरीनी बहार गुणशैल नामर्नु चैत्य हतुं. परमात्मा श्री महावीर विहार करता करतां ते चैत्यमां समवसर्या. श्रेणिक राजा तथा पौरजनो वांदवा आव्या. पर्षदा समक्ष परमात्माए अमृतधारावर्षिणी देशना आपी. पर्षदाना लोको पोतपोताना स्थाने गया तेवामां 'बहुपुत्रिका' नामनी देवी पोताना परिवार सहित भगवंतने वांदवा आवी.
सौधर्म देवलोकमां बहुपुत्रिका' नामनुं विमान छे. तेमां सुधर्मा नामनी सभा छे. तेमां बहुपुत्रिका नामनु सिंहासन छे ते ऊपर वसनारी आ बहुपुत्रिका नामनी देवी जाणवी. चार हजार सामानिक देव, चार सपरिवार महत्तरिका, त्रण पर्षदा, सात सेनापति, सोळ हजार आत्मरक्षक देवो एटलो तेनो परिवार छे. आटला परिवार उपरांत ते विमानवासी बीजा देव-देवीओनी साथे ते देवी वीणा, कंसताल, घनवाद्य, मृदंग, ढोल विगेरे प्रकारना वाजिंत्र नादपूर्वक दिव्य देवताई भोगो भोगवती हती. एकदा अवधिज्ञानद्वारा जंबूद्वीपने जोतां जोतां तेणे भगवान महावीरने राजगृही नगरीमां समवसरेला जाण्या एटले पोताना सिंहासनथी उठी, सात-आठ पगलां आगळ जई, जेम सूर्याभदेवे शक्रस्तवपूर्वक वन्दना करी हती तेम परमात्माने नमस्कार को. वांदीने पोताना सिंहासन ऊपर पूर्वाभिमुख बेसीने, पोताना आभियोगिक देवने बोलावीने, जेम सूर्याभदेवे सुघोषा घंटा वगडावीने घोषणा करावी हती तेम बहुपुत्रिका देवीए पण उद्घोषणा करावी के-श्रमण भगवान महावीरने वन्दन करवा जर्बु छे माटे सर्वे देव देवीओ सज्ज थईने आवो. बाद देवीए सूर्याभदेवना विमाननी माफक एक हजार योजन विशाळ एक विमान विकुथु, तेमां सर्व देव-देवीयोनी साथे उत्तर दिशामांथी असंख्याता द्वीप समुद्रनुं उल्लघंन करीने, सूर्याभनी माफक भगवन् पासे आवी, विधिपूर्वक प्रदक्षिणा आपीने वांदीने बेठी एटले भगवंते धर्मकथा कही. ते सांभळीने हर्षित बनेली देवीए देशनाने प्रांते ऊभा थई, पोतानो जमणो हाथ लांबो करी. तेमांथी १०८ देवकुमार विकुळ अने डावो हाथ लांवो करी १०८ देवकुमारीओ विकुर्वी. त्यारबाद बे लघु बाळकबालिका विकुळ. पछी भगवंतनी समक्ष सूर्याभदेवनी माफक दिव्य नाटक कर्यु.
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २८३

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